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"OBO लाइव तरही मुशायरे"/"OBO लाइव महा उत्सव"/"चित्र से काव्य तक" प्रतियोगिता के सम्बन्ध मे पूछताछ

"OBO लाइव तरही मुशायरे"/"OBO लाइव महा उत्सव"/"चित्र से काव्य तक" प्रतियोगिता के सम्बन्ध मे यदि किसी तरह की जानकारी चाहिए तो आप यहाँ पूछताछ कर सकते है !

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आप मुझे शाम में फ़ोन कर लें मैं गा कर कोशिश करूँगा कि आपको धुन बता सकूँ |

०९४३१२८८४०५

yahi message box me likh de to achha rahega.....waise mai phone bhi kar sakta hu...jaisa aap kahe...

aadarniye admin sir is bar ke live tarahee mushayre 25 mein jo misra diya gaya hai uski bahar ka naam nahin bataaya gaya hai ...har bar ki tarah is bar bhi bahar ka naam de diya jaye to achcha hoga 

भाई शरीफ़ अहमद क़ादरी ’हसरत’ साहब,  इस बार के मुशायरे (अंक 25) में दिया गया मिसरा है - यह हमारे वक़्त की सबसे सही पहचान है .  इस बह्र का नाम है -  बहरे रमल मुसमन महज़ूफ़

धन्यवाद.

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" के इस अंक से प्रति सदस्य अधिकतम दो गज़लें ही प्रस्तुत की जा सकेंगीं |
  • शायर गण तरही मिसरा मतले में इस्तेमाल न करें
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें.


    jay ho jai ho

    dil khush ho gaya yah padh kar

जानकारी के लिए आपका धन्यवाद..! अब एक ग़ज़ल के लिए मेहनत नहीं करनी पड़ेगी.. मगर एक कमी भी रह जाएगी.. अभ्यास की..!!

नये नियम समीचीन हैं.

सादर

namaskar admin sir is bar ke tarahi mushayre 31 me jo misra diya gaya hai isme bataya gaya he ki mool ghazal me 8 ruqn hein lekin yahan par 4 ruqni misra diya gaya he ....mujhe ye jan na he ki humko ghazal 4 ruqni kehni he ya 8 ruqni ........krpiya samjha dein.........

हसरत साहब जैसा कि मैंने पहले भी कहा है कि मुशायरे में दिया गया मिसरा ४ रुकनी ही है इसलिए आपको अपनी गज़लभी ४ रुकनी मिसरों पर ही कहनी है| दूसरी बात यही कि तरही मिसरा आपको लेना ही है ..किसी भी शेर के मिसरा ए सानी में तो अपने आप गाज़ल ४ रुकनी हो जायेगी .....बहरे मुतकारिब मुसम्मन सालिम अर्थात फऊलुन फऊलुन फऊलुन फऊलुन| 

आपको मूल ग़ज़ल से कुछ भी लेना देना नहीं है, वो तो केवल जानकारी हेतु मंच संचालक जी ने बताया है, आप केवल तरही मिसरा पर ध्यान दें जो केवल 4 रुक्न का है अतः आपकी ग़ज़ल भी 4 रुक्नों की ही होगी ।

dhanyawad sir

तरही   मुशायरे  32 के  लिए तरही   ग़ज़ल।

     युग मशीनों का इंसा बेकाम है

     नित नए खोजों का ये अंजाम है।

     होठ पे मय के छलकते जाम है

     नाम उनके ही गुज़रती शाम है।

     कर गए जो काम करना था किया

     अब यहाँ आराम ही आराम है।

     सिल के मुह बैठे रहो तो ठीक है

     खुल गया जो मौत ही ईनाम है।

     हाथ के छालों को देखा "मन्जरी "

     फूट कर भी मिल न पाया दाम है।

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