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'चित्र से काव्य तक प्रतियोगिता अंक -११' (Now Closed with Record 1060 Replies in 3 Days)

आदरणीय मित्रों !

नमस्कार|

'चित्र से काव्य तक प्रतियोगिता’ अंक -११ में आप सभी का हार्दिक स्वागत है ! 

 

दोस्तों !

जरा इन दादा जी व दादीजी को देखिये तो .......कितने खुश हैं ये दोनों ..... वास्तव में यही तो असली प्यार है और इसी उम्र में ही ऐसे सहारे की आवश्यकता होती है वस्तुतः वैलेंटाइन डे के मूल भाव इस चित्र में पूरी तरह समाविष्ट हैं ! हमारा यह दायित्व है कि हम सब इन्हें कदम-कदम पर हर प्रकार का सहयोग देते रहें |   

छिपा है प्यार दिल में मिला इनको करीने से,

नहीं पतवार हाथों में , मजा मौजों में जीने से.

बुजुर्गों की मदद करके सुकूं से जिंदगी गुज़रे,

दुआ इनकी मिले जिनको दमक जायें नगीने से.

 

 आइये तो उठा लें आज अपनी-अपनी कलम, और कर डालें इस चित्र का काव्यात्मक चित्रण ! 

 

और हाँ! पुनः आपको स्मरण करा दें कि ओ बी ओ प्रबंधन द्वारा यह निर्णय लिया गया है कि यह प्रतियोगिता सिर्फ भारतीय छंदों पर ही आधारित होगी  साथ-साथ इस प्रतियोगिता के तीनों विजेताओं हेतु नकद पुरस्कार व प्रमाण पत्र  की भी व्यवस्था की गयी है ....जिसका विवरण निम्नलिखित है :-


"चित्र से काव्य तक" प्रतियोगिता हेतु कुल तीन पुरस्कार 
प्रथम पुरस्कार रूपये १००१
प्रायोजक :-Ghrix Technologies (Pvt) Limited, Mohali
A leading software development Company 

 

द्वितीय पुरस्कार रुपये ५०१
प्रायोजक :-Ghrix Technologies (Pvt) Limited, Mohali

A leading software development Company

 

तृतीय पुरस्कार रुपये २५१
प्रायोजक :-Rahul Computers, Patiala

A leading publishing House

नोट :-

(1) १७ तारीख तक रिप्लाई बॉक्स बंद रहेगा, १८  से २० तारीख तक के लिए Reply Box रचना और टिप्पणी पोस्ट करने हेतु खुला रहेगा |

(2) जो साहित्यकार अपनी रचना को प्रतियोगिता से अलग  रहते हुए पोस्ट करना चाहे उनका भी स्वागत है, अपनी रचना को"प्रतियोगिता से अलग" टिप्पणी के साथ पोस्ट करने की कृपा करे | 

(3) नियमानुसार "चित्र से काव्य तक" प्रतियोगिता अंक-१० के प्रथम व द्वितीय स्थान के विजेता इस अंक के निर्णायक होंगे और नियमानुसार उनकी रचनायें स्वतः प्रतियोगिता से बाहर रहेगी |  प्रथम, द्वितीय के साथ-साथ तृतीय विजेता का भी चयन किया जायेगा | 

सभी प्रतिभागियों से निवेदन है कि रचना छोटी एवं सारगर्भित हो, यानी घाव करे गंभीर वाली बात हो, रचना पद्य की किसी विधा में प्रस्तुत की जा सकती है | हमेशा की तरह यहाँ भी ओ बी ओ  के आधार नियम लागू रहेंगे तथा केवल अप्रकाशित एवं मौलिक कृतियां ही स्वीकार किये जायेगें |

 

विशेष :-यदि आप अभी तक  www.openbooksonline.com परिवार से नहीं जुड़ सके है तो यहाँ क्लिक कर प्रथम बार sign up कर लें| 

 

अति आवश्यक सूचना :- ओ बी ओ प्रबंधन ने यह निर्णय लिया है कि "चित्र से काव्य तक" प्रतियोगिता  अंक-१०, दिनांक १८  फरवरी  से २० फरवरी  की मध्य रात्रि १२ बजे तक तीन दिनों तक चलेगी, जिसके अंतर्गत आयोजन की अवधि में प्रति सदस्य   अधिकतम तीन पोस्ट ही दी जा सकेंगी साथ ही पूर्व के अनुभवों के आधार पर यह तय किया गया है कि  नियम विरुद्ध व निम्न स्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये और बिना कोई पूर्व सूचना दिए प्रबंधन सदस्यों द्वारा अविलम्ब हटा दिया जायेगा, जिसके सम्बन्ध में किसी भी किस्म की सुनवाई नहीं की जायेगी |

  • मंच संचालक: अम्बरीष श्रीवास्तव

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Replies to This Discussion

सुन्दर, सरस और मनमोहक छंद. आदरणीय आलोक सीतापुरी जी, हार्दिक बधाई.

वाह आदरणीय, कितना सुंदर छंद रचा , फागुनी बयार चलने लगी और हिय-जिय झूम उठा है, बधाई स्वीकार करें.

दादा- दादी प्रेम में, मत कीजे उपहास,
आँखों में माधुर्य है, मुख पर स्मित हास,

मुख पर स्मित हास लिए, दादी यूँ बोली,

क्यूँ करते हो प्राणप्रिय, हमसे ऐसी ठिठोली,
दादा का उत्तर सुनकर, खिल उठी ये वादी,
पहले हैं हम राधा-मोहन, फिर हैं दादा-दादी.

चित्र को परिभाषित करने का बहुत सुन्दर प्रयास किया है आदरणीय अरविन्द कुमार जी, बधाई.

 

bahut sundar bhaav.

कुंडली कहने का अच्छा प्रयास किया है, मगर शिल्प की दृष्टि से रचना को बहुत ज्यादा कसा जाना बाकी है. बहरहाल प्रविष्टि भेजने के लिए धन्यवाद. 

sunder Arvind bhai.

अरविंद कुमार जी, बढ़िया सार गर्भित कुंडलिया की रचना की है, बधाई हो............

कुण्डलिया (प्रतियोगिता से अलग)

|

नेह बदरिया छा गयी, मौसम की है मांग

फागुन को मस्ती चढी, अरु दादी को भांग

अरु दादी को भांग, जोश में गडबड कर दी

धर दादा की बांह, गाल में चुम्मा जड़ दी

दादा जी आवाक, चमकती घोर बिजुरिया 

दादी बन कर आज, बरसती नेह बदरिया

|

****************************************

सादर.

संजय मिश्रा 'हबीब'

vaah ..vaah Sanjay ji ghuma dia  aapki rachna ne to bas yahi kahungi kitne bhaagya shaali hain ye aadarniye ugal 

chhand pe channd dohe pe dohe baras rahe hain tareefon ka pitara khtm hi nahi ho raha ek se ek diggaj aur ustaad hain maidaan me .........kaavya .itihaas rach dala ek chitra ne chitra kheenchne vaale ko bhi lakh lakh badhaai.

आपसे सहमत हूँ आदरणीया राजेश कुमारी जी |

शिल्प की दृष्टि के कसी हुई और कथ्य की दृष्टि से प्रभावशाली कुंडली. आदरणीय संजय मिश्र हबीब साहिब बधाई कबूल फरमाइए.  

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"जी जी .. हा हा हा ..  सादर"
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