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"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 178 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा जनाब 'बशीर बद्र' साहिब की ग़ज़ल से लिया गया है |

'बहुत तलाश किया कोई आदमी न मिला'

मुफ़ाइलुन फ़इलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन/फ़इलुन
1212 1122 1212 22/112

मुज्तस मुसम्मन मख़्बून महज़ूफ़ मुसक्किन

रदीफ़ --न मिला

क़ाफ़िया:-(ई की तुक)
अजनबी,दोस्ती,ख़ुशी, कभी, वही आदि...

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन होगी । मुशायरे की शुरुआत दिनांक 25 अप्रैल दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 26 अप्रैल दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

नियम एवं शर्तें:-

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |

एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |

तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |

शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |

ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |

वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें

नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |

ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

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मंच संचालक

जनाब समर कबीर 

(वरिष्ठ सदस्य)

ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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स्वागतम

आदाब अर्ज़ है महफ़िल-ए-मुशायरा। 

सभी सदस्यों को सादर अभिवादन।

तू शर्बतों में ये नफ़रत की शोरिशी न मिला 

ओ बाबा खीर के प्यालों में तुर्शगी न मिला 

*

शिगुफ़्तगी-ओ-लताफ़त से बात रख अपनी

तमीज़ और सलासत में सरकशी न मिला 

*

ख़रीद लेगा जहाँ को मगर तमाज़ुज से 

तिजारतों में ये नफ़रत की चाशनी न मिला 

*

भटक रहा हूँ फ़रिश्तों के दर्मियाँ कब से 

'बहुत तलाश किया कोई आदमी न मिला'

*

गिरा था अश्क-ए-नदामत से तर लिये दामन

उठाया सर जो क़बा पर तो दाग़ ही न मिला 

*

समझ सके जो मिरे दिल पे सब्त कुछ नज़्में 

सुख़न-शनास 'अमीर' ऐसा एक भी न मिला 

"मौलिक व अप्रकाशित" 

आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी जी आदाब 

अच्छी ग़ज़ल कही आपने। बधाई स्वीकार करें।

आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।

अच्छी ग़ज़ल हुई है जनाब अमीरउद्दीन जी। बधाई

1212 1122 1212 22/112)
*
नशा ये इश्क़ का इसमें तो बेख़ुदी न मिला
गमों का दौर है भाया खुदा खुशी न मिला।१।
*
किसी के प्यार में तू अपनी दुश्मनी न मिला
सफर में मौत  के  मासूम  जिन्दगी न मिला।२।
*
बहुत  हीन  चरागों  से  सज  रहा जीवन
स्वयं के स्वार्थ सियासत की तीरगी न मिला।३।
*
जबाँ से फूल झरे  दिल  में आँधियाँ भी उठी
समझ ले अर्थ जो इसके वो जौहरी न मिला।४।
*
वही  ख़ुलूस  पुराना  अज़ीज़  है  हमको
चतुर विचार की इसमें तू ताजगी न मिला।५।
*
बना  तमाम  नये  धर्म  छल  रहा  खुद को
मनुज तभी तो यहाँ एक भी सुखी न मिला।६।
*
टँगे थे धर्म  के  तमगे  सभी  के सीनों पर
'बहुत तलाश किया कोई आदमी न मिला'।७।
*
भली है रात 'मुसाफिर' थकन से चूर बहुत
खलल को नींद में चन्दा तू रोशनी न मिला।८।
*
मौलिक/अप्रकाशित

अच्छा प्रयास है लक्ष्मण भाई। किन्तु ग़ज़ल समय चाहती है। अभी सभी गुणीजनों की राय आनी है, उससे निश्चित सहायता मिलेगी।

आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी आदाब।
ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है। बधाई स्वीकार करें।

1212 1122 1212 22/112
*
नशा है इश्क़ का इसमें तू बेख़ुदी न मिला
गमों का दौर है भाया ख़ुदा ख़ुशी न मिला।१।

कृपया रब्त स्पष्ट करें?
*
किसी के प्यार में तू अपनी दुश्मनी न मिला
सफ़र में मौत के मासूम ज़िन्दगी न मिला।२।

कृपया रब्त स्पष्ट करें?
*
जबाँ से फूल झरे दिल में आँधियाँ भी उठीं 
समझ ले अर्थ जो इसके वो जौहरी न मिला।४।
जौहरी तो रत्न आभूषण की परख करते हैं।
    या तो उला बदलें या क़ाफ़िया
*
       // शुभकामनाएँ //

1212 1122 1212 22/112


तमाम लोग मिले हमको दोस्त ही न मिला

हमारे वास्ते अहबाब एक भी न मिला १

ख़लिश रहेगी हमेशा यही मेरे दिल में

मेरा रहा तू मगर क्यों मुझे कभी न मिला 2

नया है शहर मगर ख़ूब प्यार इसने दिया

है अपनापन सभी में कोई अजनबी न मिला ३

भटक रही हूँ कि पाए क़रार ज़ीस्त मेरी

तलाशती रही जिसको कहीं वही न मिला ४

दिलों को जीतने का फ़न है इस महब्बत में

किसी को आज तलक भी ये राज़ ही न मिला ५

तुम्हारे प्यार से रौशन हुआ जहाँ मेरा

अकेला छोड़ के इसमें तू तिरगी न मिला ६

समझ रही थी जिसे दोस्त वो ये बोला आज

“रिया” है इश्क़ मुझे इसमें दोस्ती न मिला ७

गिरह

“न जाने क्यों सभी किरदार पहने रहते हैं

“बहुत तलाश किया कोई आदमी न मिला “

“मौलिक व अप्रकाशित “

अच्छी ग़ज़ल हुई है ऋचा जी। 

// तीसरा शेर अच्छा लगा

// शेर 5 में अगर राज़ किसी को भी न मिला तो ये पता कैसे चला। कुछ परिवर्तन कि जरूरत महसूस हो रही है

अभी सभी गुणीजनों की राय आनी है, उससे निश्चित निखार आएगा।

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