परम आत्मीय स्वजन,
ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 176 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है |
इस बार का मिसरा जनाब अमीर इमाम साहिब की ग़ज़ल से लिया गया है |
'इन हवाओं को मेरी ख़ाक उड़ाने देना'
फ़ाइलातुन फ़इलातुन फ़इलातुन फ़ेलुन/फ़इलुन
2122 1122 1122 22/112
बह्र-ए-रमल मुसम्मन सालिम मख़बून महज़ूफ़
रदीफ़ --देना
क़ाफ़िया--(आने की तुक)
बताने, दिखाने,आने,जाने,उठाने आदि...
मुशायरे की अवधि केवल दो दिन होगी । मुशायरे की शुरुआत दिनांक 25 फरवरी दिन मंगलवार को हो जाएगी और दिनांक 26 फरवरी दिन बुधवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.
नियम एवं शर्तें:-
"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।
विशेष अनुरोध:-
सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें |
मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....
"OBO लाइव तरही मुशायरे" के सम्बन्ध मे पूछताछ
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मंच संचालक
जनाब समर कबीर
(वरिष्ठ सदस्य)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
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मेरे जाने पे उसे अश्क बहाने देना
बेवफ़ाई का उसे मोल चुकाने देना
ये जहाँ वाले ख़ुदा को भी भुला देते हैं
अदना किरदार मेरा इनको भुलाने देना
मेरे महबूब की गलियों से गुज़रती हैं ये
"इन हवाओं को मेरी ख़ाक उड़ाने देना"
उसकी तस्वीर है इसमें ये अमानत जिसकी
तुम अलग रखना मेरा दिल न जलाने देना
आख़री दीद को मेरी तो उसे आना है
अपना चहरा वो छिपाए तो छिपाने देना
मौलिक–अप्रकाशित
आदरणीय Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" जी आदाब
पहली बार इस मंच पर आपकी ग़ज़ल पढ़ रहा हूँ।
अच्छी ग़ज़ल हुई है। बधाई स्वीकार करें। शुभकामनाएँ
आदरणीय अमित जी सादर आभार
आदरणीय Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" जी आदाब, तरही मिसरे पर ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें और मुशायरे में आयी दूसरी ग़ज़लों पर भी अपनी क़ीमती राय का इज़हार करें, धन्यवाद।
आदरणीय बाग़पती जी सादर आभार। आपके आदेश का अनुपालन अवश्य होगा
आदरणीय पंकज जी नमस्कार
ख़ूब ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये
सादर
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
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