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आदरणीय विजय भाई , बहुत सही बात कही आदरणीय , एक और अच्छी रचना के लिये आपको बधाइयाँ ।
आदरणीय विजयशंकर सर , बहुत सही फ़रमाया आपने ...
आदमी अपनी तारीफ़ के लिए
किसी का मोहताज नहीं होता ,
यह काम वह खुद कर लिया करता है.
सुन्दर प्रस्तुति है |सादर अभिनन्दन |
आदरणीय विजय शंकर सर आपने इन पंक्तियों में आत्म प्रशंसा करने वालो को अच्छा दर्पण दिखाया है, यदि वे ध्यान दे तो उनका भी भला होगा और ओरो का भी भला होगा। बहुत बहुत बधाई, सादर।
आदरणीय डा. विजय जी. कमाल की प्रस्तुति, आपकी कविताओं का दृष्टिकोण बड़ा अजीब सा होता है.किन्तु अंत की सकारात्मक सोच, निरंतरता बनाए रखती है. ह्रदय से बधाई लीजिये ,सर.
आदरणीय डॉ विजय शंकर सर, बेहतरीन प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई
फायदे और भी हैं इसके ,
शरीर-सौष्ठव बना रहता है ,
नियमित व्यायाम होता रहता है,
आदमी अपनी तारीफ़ के लिए
किसी का मोहताज नहीं होता ,
यह काम वह खुद कर लिया करता है.
जन -जीवन में यह काम बहुत जरूरी है ,
सर्वोच्च प्राथमिकता पर किया जाता है ||
बल्कि आदमी का अस्तित्व ,
उसका सबकुछ , उसका भविष्य ,
इसी पर टिका पाया जाता है ॥
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