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नहीं बदले हम - डॉo विजय शंकर

समय सरसठ साल
कम नहीं कहलाता है
एक अबोथ शिशु
वयोवृद्ध हो जाता है |
बदले कोई तो दुनियाँ
जहान बदल जाए
न बदले तो जमीं क्या
पावदान न बदल पाये |
बहुत कुछ बदला , नहीं बदला ,
आदमी का आदमी के प्रति रुख
नहीं बदला आदमी का
आदमी के प्रति व्यवहार |
बदले हैं तो उपकरण ,
कपड़े और कीमतें ,
सत्ता के नायक और आका
सत्ता के गलियारों के लोग |
नहीं बदली हमारी दृष्टि ,
न ही हमारी सोच |
सरकार हम बन गए ,
सरकार हम दे न पाये |
आजाद हम हो गए,
आजादी हम दे न पाये |

मौलिक एवं अप्रकाशित.
डा० विजय शंकर

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Comment by Dr. Vijai Shanker on August 16, 2014 at 1:55pm
हम बदले नहीं, हम बदलना चाहते भी नहीं , पर हम चाहते हैं कि हमारे आस पास का सारा परिवेश बदल जाए , सारी सुविधाएं उपलब्ध हो जाएँ . आपको रचना पसंद आई, अच्छा लगा . बधाई के लिए बहुत बहुत धन्यवाद.
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 16, 2014 at 11:42am

आपकी रचना का सार व् आपका अनुभव एक दम सटीक है आदरणीय डा.विजय जी. हम बिलकुल नहीं बदले है, वैसे के वैसे ही है.

हार्दिक बधाई स्वीकार करें

Comment by Dr. Vijai Shanker on August 15, 2014 at 1:24pm
आदरणीय गोपल नारायण जी , आपके शब्दों में आपकी परख परिलक्षित होती है, बधाई के लिए धन्यवाद .
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 15, 2014 at 1:09pm

विजय जी आपकी आयु का पता चला  और अन्तराल में उपजे निष्कर्ष का भी i आपको  बधाई i

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