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शून्य में मैं ढूँढ रहा हूँ

(My First Poetry on OBO )

शून्य में मैं ढूँढ रहा हूँ

अपने जीवन के सारांश

बिखरी बिखरी यादों के पल रीते रीते बिन रहा हूँ

बीती बातें बीती यादें

बीते सपने बीती राहें

हर बीते दिन की अकुलाहट थामे

शून्य में मैं ढूँढ रहा हूँ

अपने जीवन के सारांश

बिखरी बिखरी यादों के पल

रीते रीते बिन रहा हूँ

आँखो मे फैला अंधियारा

नवचेतन का मार्ग नही

तुमसे ही मेरा जीवन था

तुमसे परे कोई मार्ग नही

तुमको मुझमे ढूँढ रहा हूँ

चहुओर है शून्य ही व्याप्त

शून्य में मैं ढूँढ रहा हूँ

बिखरे जीवन के सारांश

रीते रीते बिन रहा हूँ

अपने जीवन के सारांश

बिखरी बिखरी यादों के पल

रीते रीते बिन रहा हूँ

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Comment

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Comment by Nitish Kumar Pandey on February 8, 2013 at 2:58pm

सौरभ जी , शिरोमणी जी और संदीप जी धन्यवाद. शून्य तो अब मेरे जीवन की परिणती बन गयी है. मैं तो इसी मे हूं

Comment by Nitish Kumar Pandey on February 8, 2013 at 2:55pm

लक्ष्मण जी आपकी बधाई के लिये धन्यवाद, ये मेरी प्रथम रचना नहीं है मैने इससे पहले भी कविता लिख् चुका हूं
हां इस वेबसाइट पार ए मेरी पहली रचना है जो पोस्ट हुई है. और बीन रहा हूं होना चाहिए था गळती के लिये माफी चाहता हूं

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 7, 2013 at 7:51pm
पहली रचना में ही कमाल कर दिया 
आपने तो शून्य में भी ढूंढ़ ही लिया ।
हार्दिक बधाई आपको नितीश भैया
भला करेगी आपका तो शारदा मैया । 
हाँ एक बात - ये बिन रह हूँ है या बीन रह हूँ 
Comment by Shyam Narain Verma on February 7, 2013 at 10:24am

Comment by Shyam Narain Verma on February 7, 2013 at 10:24am


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Comment by Saurabh Pandey on February 6, 2013 at 8:59pm

नीतीश जी, आपका स्वागत है. आपकी रचना के लिए धन्यवाद व शुभकामनाएँ. 

Comment by ram shiromani pathak on February 6, 2013 at 8:58pm

आँखो मे फैला अंधियारा

नवचेतन का मार्ग नही

तुमसे ही मेरा जीवन था

तुमसे परे कोई मार्ग नही!!!!! इसके लिए बधाई............

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on February 6, 2013 at 6:46pm

क्या आप शून्य तक पहुँच पाए हैं ???
मैं तो आजतक शून्य की तलाश में हूँ
वैसे आप ने शून्य में बहुत कुछ खोजा है इसके लिए बधाई

कृपया ध्यान दे...

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