2×15
सबका इक दिन आता है दिन मेरा भी आ जायेगा
जीवन पूरा होते-होते जीना भी आ जायेगा
आहें भरना सीख गए तो लिखना भी आ जायेगा
इन शब्दों में इक दिन उसका चेहरा भी आ जायेगा
इसको मन की लाचारी भी कहते हैं दुनिया वाले
खुद से बातें करते करते कहना भी आ जायेगा
आलू पर मिट्टी लिपटी थी ,मिट्टी से जब आया था
दुनिया में कुछ रोज रहेगा छिलका भी आ जायेगा
जिसकी चाहत में इतने दिन आस लगाकर जिंदा थे
मिल न सका तो क्या उसके बिन जीना भी आ जायेगा?
इतना गहरा सन्नाटा है इस छोटे से कमरे में,
खामोशी को पी पी कर चुप रहना भी आ जायेगा
जग के धोखे तेरे सामने रखते लेकिन ये डर है
इन बातों में कोई फसाना तेरा भी आ जायेगा
तू मुझको सौ बातें कह ले फिर भी इतना जान समझ
केवल सुनते सुनते मुझको गुस्सा भी आ जायेगा
दुनिया भर में खोजा तुझको पता नहीं पाया तेरा
उलझन में रहकर हमको शक करना भी आ जायेगा
मौलिक और अप्रकाशित
Comment
ग़ज़ल पर बहुमूल्य प्रतिक्रिया ,इस्लाह के लिए हार्दिक आभार आदरणीया समर कबीर साहब
सादर
जनाब मनोज अहसास जी आदाब,बहुत उम्द: ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
'दुनिया भर में खोजा तुझको पता नहीं पाया तेरा'
इस मिसरे को यूँ कर लें:-
'दुनिया भर में ढूँढा लेकिन फिर भी नज़र न आया तू'
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