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एक ग़ज़ल इस्लाह के लिए मनोज अहसास

2×15

कोई अपना साथ न आए, हर कोशिश नाकाम लगे
मेरे पास चले आना जब, जीवन ढलती शाम लगे

इसको पिछले जन्मों का फल,कहते हैं दुनिया वाले
पेड़ बबूल के बोये फिर भी,उसके हाथों आम लगे

बिक जाने की लाचारी का,एक तजुर्बा ये भी है
जितनी ज्यादा खुद्दारी थी,उतने ही कम दाम लगे

चौथ का चांद देखने वाले,पर लगता है झूठा दोष
हमने तो पूनम को देखा फिर भी सौ इल्जाम लगे

टूटा मन है ,रोगी तन है, रिश्तों में बेगानापन
यारो कुछ तरकीब निकालो,जिससे मुझे आराम लगे

एक बहुत व्याकुल सा बच्चा,कहता था विद्यालय में
कॉपी लेकर तब आऊंगा पापा का जब काम लगे

जान से प्यारे लोगों ने जब,दिल की बात नहीं जानी
इस बेजान मुबाइल की सूरत ही मुझे गुलफाम लगे

मुफ्त का घर पाने की जिद पर,अड़े हुए हैं सेठ कई
एक कबीरा बोल रहा है,दुनिया एक हम्माम लगे

कोई समझ नहीं पाया गर,प्यास हमारी तो क्या है
पीने वाले को दुनिया में,हर कोई खय्याम लगे

मौलिक और अप्रकाशित

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Comment

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Comment by मनोज अहसास on August 17, 2019 at 8:20pm

हार्दिक आभार आदरणीय प्रदीप देवी शरण भट्ट जी

Comment by मनोज अहसास on August 17, 2019 at 8:19pm

बहुमूल्य इस्लाह के लिए हार्दिक आभार आदरणीय समर कबीर साहब आपके सुझाव का में पालन करूंगा

Comment by प्रदीप देवीशरण भट्ट on August 16, 2019 at 6:21pm

वाह बहुत खूब

Comment by Samar kabeer on August 16, 2019 at 11:27am

जनाब मनोज अहसास जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

'बिक जाने की लाचारी का,एक तजुर्बा ये भी है'

इस मिसरे में 'तजुर्बा' शब्द ग़लत है,सहीह शब्द है, "तज्रिबा"212 है ।

'चौथ का चांद देखने वाले,पर लगता है झूठा दोष'

इस मिसरे में 'चाँद' शब्द के कारण लय बाधित हो रही है,इसलिए 'चाँद' की जगह "चंदा" शब्द उचित होगा ।

'एक कबीरा बोल रहा है,दुनिया एक हम्माम लगे'

इस मिसरे को यूँ कर लें:-

'देख कबीरा बोल रहा है दुनिया इक हम्माम लगे'

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