मुझसे ना उलझे कोई ये जान ले
मैं कोई श्लाघा नही ताकीद हूँ
तेरी मंज़िल तक तुझे पहुँचाऊगाँ
मैं कोई छलिया नही मुर्शिद हूँ
हंस रहे हैं मुझपे वो ये जान लें
मैं कोई उजबक नहीं राशीद हूँ
बादलों को चीरकर निकालूँगा फ़िर
मैं कोई तारा नहीं ख़ुर्शीद हूँ
मत नवाज़ों उस बुलंदी तक मुझे
मै कोई आली नही मुरीद हूँ
मेरे दर पर मत करो सज़दा ‘प्रदीप’
मैं कोई पत्थर नहीआबिद हूँ
-प्रदीप देवीशरण भट्ट- मौलिक व अप्रकशित
खुर्शिद-सूरज,
मुर्शिद- मार्गदर्शक,
मुरीद-शिष्य /चेला,
राशीद- बुद्दिमान
आबिद पुजारी
ताकीद=चेतावनी
श्लाघा=प्रशंसा
Comment
लक्ष्मण जी शुक्रिया, मैं इस विद्या का एक विद्यार्थी हूँ, प्रयास करता रहता हूँ।
समर जी शुक्रिया,
मैंने आपको एक व्याक्तिगत संदेश इसी आशय से दिया था कि कृपया आप अपना मोबाइल नम्बेर दे देवें ताकि पोस्ट करने से पूर्व मैं आपसे इस्लाह करा सकूँ। गज़ल लिखने का प्रयास करता हूँ किंतु कई बार कुछ दिक्कत आ जाती है जिससे इस्लाह की ज़रुरत पड्ती है, मैं यहाँ हैदराबाद में कुछ माह पहले ही मुम्बई से ट्रांसफर पर आया हूँ।
जनाब प्रदीप जी आदाब,अगर ये ग़ज़ल है तो इसमें मतला नहीं है,और क़ाफ़िया दोष भी है,बहरहाल इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
आ. भाई प्रदीप जी, गजल का अच्छा प्रयास हुआ है। हार्दिक बधाई। कई शेर रदीफ दोष लिए हैं देखिएगा।
सुन्दर
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