फूल महकते हैं
वे सिर्फ महकते नहीं
अपितु देते हैं एक संदेश
कि अपने भीतर
आप भी भर लें
इतनी महक
कि आपका अस्तित्व ही
बन जाए परिमल
और वह महकाये पूरे विश्व को
बिना किसी यात्रा या भ्रमण के
और खुद दुनिया भर से लोग
आयें तुम्हारे पास
तुम्हारे सुवास से आकर्षित होकर
तुम्हारे परिमल की
एक गंध पाने को
जैसा टूट पड़ते हैं शलभ
किसी दिए पर
बिना किये अपने प्राणों की परवाह
पर तुम जलाना मत
उन्हें सिर्फ देना
अपनी महक
क्योंकि महक ही है
सही मायने में
भक्ति और प्रेम का सार
(मौलिक /अप्रकाशित )
Comment
जनाब गोपाल नारायण जी आदाब,अच्छी रचना हुई है,बधाई स्वीकार करें ।
बहुत खुब
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