For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गज़ल - गमों का नाम हो जाये हमारे नाम से साकी।

पिला दे घूंट दो मुझको, ज़रा नजरों से ऐ साकी।।
मिलुंगा मैं तुझे हर मोड़ पे पहचान ले साकी।।१।।

अभी तो दिन भी बाकी है ये सूरज ही नहीं डूबा।
इसे दिलबर के आंचल में जरा छुप जान दे साकी।।२।।

जिसे पूजा किये हरदम जिसे समझा खुदा मैंने।
किया बर्बाद मुझको तो उसी इन्सान ने साकी।।३।।

मेरा महबूब भी तू है मेरा हमराज भी तू है।
वे दुश्मन थे मेरे पक्के जो मेरे साथ थे साकी।।४।।

नहीं इससे बड़ी कोई भी अब अपनी तमन्ना है।
गमों का नाम हो जाये हमारे नाम से साकी।।५।।

यकीनन दर्द मेरा उनको भी महसूस होता है।
सभी यूं ही नही पढते हमारे शैर ये साकी।।६।।

'अमित', अपनी कहानी मयकदे की आप बीती है।
दर औ दीवार रोते हैं हमारी बात पे साकी।।७।।

मौलिक/अप्रकाशित

Views: 678

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Samar kabeer on January 25, 2019 at 10:11pm

"मातम कुनाँ" मातम करना,मातम करने वाले ।

Comment by Amit Kumar "Amit" on January 25, 2019 at 9:42pm

आदरणीय ये कुनाँँ का अर्थ समझ नही आया।

Comment by Samar kabeer on January 25, 2019 at 5:28pm

//आदरणीय इस ऊला को ऐसे कर लूं तो ठीक है क्या?

दर-ओ-दीवार हैं मातम सभी इस बात पे साक़ी//

ये मिसरा ठीक नहीं प्रिय अनुज ।

Comment by Amit Kumar "Amit" on January 25, 2019 at 9:15am

आदरणीय रवि शुक्ला सर जी ग़ज़ल पसंद करने के लिए और हौसला अफजाई के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद। सादर

Comment by Amit Kumar "Amit" on January 25, 2019 at 9:14am

आदरणीया सूचिसंदीप जी ग़ज़ल पसंद करने के लिए और हौसला अफजाई के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद। सादर

Comment by Amit Kumar "Amit" on January 25, 2019 at 9:12am

आदरणीय समर कबीर सर  मैं समझ नहीं पा रहा कि आप को किस तरीके से धन्यवाद कहूं सबसे पहले तो मैं क्षमा प्रार्थी हूं कितनी देरी से आपको रिप्लाई कर रहा हूं आदरणीय आप में अपना कीमती समय मेरी छोटी सी और अपरिपक्व गजल के लिए दिया इसके लिए आपका धन्यवाद।

 श्रीमान आप के बताए अनुसार मैं गजल में कुछ चेंज कर रहा हूं आशीर्वाद दें।

पिला दे घूंट दो मुझको, ज़रा नजरों से ऐ साकी।।
मिलूंगा मैं तुझे हर मोड़ पे पहचान ले साकी।।१।।

अभी तो दिन भी बाकी है ये सूरज ही नहीं डूबा।
इसे दिलबर के आंचल में जरा छुपने दे ऐ साकी।।२।।

जिसे पूजा किया हरदम जिसे समझा खुदा मैंने।
किया बर्बाद मुझको तो उसी महबूब ने साकी।।३।।

मेरा महबूब भी तू है मेरा हमराज भी तू है।

वही दुश्मन थे पक्के जो मेरे हमराह थे साक़ी।।४।।

नहीं इससे बड़ी कोई भी अब अपनी तमन्ना है।
गमों का नाम हो जाये हमारे नाम से साकी।।५।।

यकीनन दर्द मेरा उनको भी महसूस होता है।

सभी यूँ ही नहीं पढ़ते मेरे अशआर ऐ साक़ी।।६।।

अमित" की ये कहानी मयकदे की आप बीती है

दर-ओ-दीवार हैं मातम कुनाँ इस बात पे साक़ी।।७।।

आदरणीय इस ऊला को ऐसे कर लूं तो ठीक है क्या?

दर-ओ-दीवार हैं मातम सभी इस बात पे साक़ी।।७।।

Comment by Ravi Shukla on January 14, 2019 at 11:11am

आदरणीय अमित जी ग़ज़ल की अच्छी कोशिश हुई है दिली मुबारकबाद पेश करता हूं आदरणीय समर कबीर साहब की इस्लाह से यकीनन हम सब को भी फायदा हुआ उसका संज्ञान लीजिये। सादर

Comment by शुचिता अग्रवाल "शुचिसंदीप" on January 9, 2019 at 7:37pm

अमित भाई, समर कबीर जी के मशवरे के बाद गजल में चार चाँद लग गए हैं। एक एक ग़ज़ल की बारीकियों को देखकर उसकी गलतियों से अवगत कराना और फिर सुधारना सबके बस की बात नहीं होती। कबीर भाई जी की इस निष्ठा और आत्मीयता को नमन करती हूं।

Comment by शुचिता अग्रवाल "शुचिसंदीप" on January 9, 2019 at 7:36pm

अमित भाई, समर कबीर जी के मशवरे के बाद गजल में चार चाँद लग गए हैं। एक एक ग़ज़ल की बारीकियों को देखकर उसकी गलतियों से अवगत कराना और फिर सुधारना सबके बस की बात नहीं होती। कबीर भाई जी की इस निष्ठा और आत्मीयता को नमन करती हूं।

Comment by Samar kabeer on January 8, 2019 at 2:53pm

जनाब अमित कुमार "अमित" जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

मिलुंगा मैं तुझे हर मोड़ पे पहचान ले साकी'

इस मिसरे में 'मिलुंगा' को "मिलूँगा" कर लें ।

' इसे दिलबर के आंचल में जरा छुप जान दे साकी'

इस मिसरे में व्याकरण ठीक नहीं 'चुप जान दे' सहीह व्याकरण है "छुप जाने दे" जो यहाँ बह्र की वजह से नहीं ले सकते,इस मिसरे को यूँ कर सकते हैं:-

'इसे दिलबर के आँचल में ज़रा छुपने दे ऐ साक़ी'

'जिसे पूजा किये हरदम जिसे समझा खुदा मैंने'

इस मिसरे में 'पूजा किये'बहुवचन है,इसलिए इसे 'पूजा किया' करना उचित होगा ।

'किया बर्बाद मुझको तो उसी इन्सान ने साकी'

इस मिसरे में ऐब-ए-तनाफ़ुर है,इसे यूँ कर लें तो ऐब निकल जायेगा:;

'किया बर्बाद मुझको तो उसी महबूब ने साक़ी'

' वे दुश्मन थे मेरे पक्के जो मेरे साथ थे साकी'

इस मिसरे में भी ऐब-ए-तनाफ़ुर है,इसे यूँ कर लें तो ऐब निकल जायेगा:-

'वही दुश्मन थे पक्के जो मेरे हमराह थे साक़ी'

'यकीनन दर्द मेरा उनको भी महसूस होता है।
सभी यूं ही नही पढते हमारे शैर ये साकी'

इस शैर में शुतरगुरबा दोष है,सानी मिसरा यूँ कर लें ऐब निकल जायेगा:-

'सभी यूँ ही नहीं पढ़ते मेरे अशआर ऐ साक़ी'

'अमित', अपनी कहानी मयकदे की आप बीती है।
दर औ दीवार रोते हैं हमारी बात पे साकी'

इस शैर के ऊला में आप 'अमित' को सम्बोधित कर रहे हैं,और सानी में 'साक़ी' को ये भी शुतरगुरबा दोष है,और सानी मिसरे में ऐब -ए-तनाफ़ुर भी है,इस शैर को यूँ कर लें,ऐब निकल जायेगा:-

'"अमित" की ये कहानी मयकदे की आप बीती है'

दर-ओ-दीवार हैं मातम कुनाँ इस बात पे साक़ी'

बाक़ी शुभ शुभ ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"हार्दिक स्वागत आपका और आपकी इस प्रेरक रचना का आदरणीय सुशील सरना जी। बहुत दिनों बाद आप गोष्ठी में…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"शुक्रिया आदरणीय तेजवीर सिंह जी। रचना पर कोई टिप्पणी नहीं की। मार्गदर्शन प्रदान कीजिएगा न।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"सीख ...... "पापा ! फिर क्या हुआ" ।  सुशील ने रात को सोने से पहले पापा  की…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आभार आदरणीय तेजवीर जी।"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आपका हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी।बेहतर शीर्षक के बारे में मैं भी सोचता हूं। हां,पुर्जा लिखते हैं।"
yesterday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह जी।"
yesterday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"हार्दिक आभार आदरणीय शेख़ शहज़ाद साहब जी।"
yesterday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"हार्दिक बधाई आदरणीय शेख़ शहज़ाद साहब जी।"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आदाब। चेताती हुई बढ़िया रचना। हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब। लगता है कि इस बार तात्कालिक…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
" लापरवाही ' आपने कैसी रिपोर्ट निकाली है?डॉक्टर बहुत नाराज हैं।'  ' क्या…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आदाब। उम्दा विषय, कथानक व कथ्य पर उम्दा रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय तेजवीर सिंह साहिब। बस आरंभ…"
Friday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service