शोर भौरों का सुनोगे
तितलियाँ अब मौन हैं
रक्त रंजित हो उठा मन
रोज के अख़बार से
हर कली सहमी हुई है
आह अत्याचार से
इस चमन में भेड़ियों से
आदमी ये कौन हैं
शोर भौरों का सुनोगे
तितलियाँ अब मौन हैं
प्रीत का संगीत गुमसुम
भाव के व्यापार में
सत्य का उपहास करता
छल कपट संसार में
प्रेम है अनुबंध जैसा
प्रेम परिणय गौण है
शोर भौरों का सुनोगे
तितलियाँ अब मौन हैं
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'
Comment
उचित है आदरणीय समर कबीर जी एवं आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी..सर्व प्रथम देर से आने के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ...आदरणीय तिवारी जी से मैं असहमत नहीं था बस भावनात्मक रूप से सहमत नहीं हो पा रहा हूँ लेकिन भावनाएं सदैव सही ही हों ये जरुरी नहीं है...ऐसा भी नहीं है कि मुखड़े में कोई अच्छा बदलाव नहीं हो सकता..बिलकुल हो सकता है।"जालिमों के कहकहों में,बच्चियां अब मौन हैं" आप सभी से ही सीखने की प्रक्रिया में हूँ..सादर
आदरणीय बृजेश जी के गीत प्रयास से प्रसन्नता भी हुई और संतोष भी हुआ. मात्रिकता का यथोचित निर्वहन भी उत्साहित कर रहा है‘ उनको मिल रही सलाहें समीचीन हैं. इन सलाहों पर गंभीरता से ध्यान देना चाहिए. गीत के कथ्य और बिम्ब चयन में यदि तार्किकता न हुई तो गीतों के प्रस्तुतीकरण का आधार ही उथला प्रतीत होगा.
एक बेहतर प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाइयाँ
जनाब बृजेश जी,कोई भी उपमा या बिम्ब मन्तिक़(तार्किकता)के आधार पर ही उचित होता है,मैं जनाब अजय तिवारी साहिब से पूरी तरह सहमत हूँ ।
आदरणीय तिवारी जी छमा कीजिये मैं आपसे पूर्णरूप से सहमत भी नहीं हो पा रहा हूँ।चूँकि बच्चियों को तितलियों की उपमा दी है इसमें बच्चियों के गुणों का विलोप नहीं होना चाहिए।हो सकता है मैं गलत हूँ...कोशिश कर रहा हूँ कुछ और सन्दर्भ ढूंढ सकूँ।सादर
आदरणीय बृजेश जी,
\\लेकिन छोटी बच्चियों की तुलना अक्सर हम तितलियों से करते हैं जो खिलखिलाती हैं,गुनगुनाती हैं...\\
छोटी बच्चियों की तुलना तितलियों से इस लिए होती है कि तितलियों की ही तरह मासूम, सुन्दर, और चंचल होती हैं. इस तुलना का आधार खिलखिलाना या गुनगुनाना नहीं होता क्योंकि तितलियाँ न खिलखिलाती हैं न गुनगुनाती हैं. तुलना हमेशा सन्दर्भ के अनुसार सामान गुणों की होनी चाहिए. बोलने या मौन रहने के सन्दर्भ में तितलियों और बच्चियों की तुलना नहीं हो सकती.
सादर
जरूर आदरणीय समर कबीर जी...रचना पटल पे आपकी गरिमामयी उपस्थिति सदैव उत्साहवर्धक होती है...सादर
आदरणीय तिवारी जी आपसे असहमति का कोई कारण नहीं है..लेकिन गीत की पृष्ठभूमि जरूर बताना चाहूँगा उसके बाद आप गुणीजनों की सलाह का इंतज़ार रहेगा..दरअसल ये गीत आज समाज में आये दिन मासूम बच्चियों के साथ हो रहे पाशविक अत्याचार को लेकर है..ये ठीक है तितलियाँ मौन रहती हैं..लेकिन छोटी बच्चियों की तुलना अक्सर हम तितलियों से करते हैं जो खिलखिलाती हैं,गुनगुनाती हैं..इसीलिए तितलियाँ मौन हैं।और क्योंकि इन अपराधों में अधिकांशत नाबालिक या कम उम्र लड़के शामिल दिख रहे हैं इसलिए शोर भौरों का..पिछले कुछ दिनों से तितलियाँ शब्द दिमाग में गूंज रहा था और उसी एक शब्द से ये गीत जन्मा..सादर
आदरणीय डा. साहब...आपको गीत पसंद आया जानकर बड़ी प्रसन्नता हुई..सादर आभार
जनाब अजय तिवारी जी आदाब,अच्छा प्रयास है,बधाई स्वीकार करें ।
जनाब अजय तिवारी जी की बात का संज्ञान लें ।
आदरणीय बृजेश जी, गीत के लिए हार्दिक बधाई. ये थोड़ा जल्दी में लिखा गया लगता है. मसलन मुखड़े की पंक्ति को देखें :
शोर भौरों का सुनोगे
तितलियाँ अब मौन हैं
आप कहना ये चाह रहे हैं कि अब कुछ ऐसा हो रहा है जो ग़लत है. लेकिन जो प्रतीक आपने चुने हैं उनसे यह बात निकल कर नहीं आती. शोर करना या गुनगुनाना भौरों का स्वभाविक गुण हैं और मौन रहना तितलियों का. 'तितलियाँ अब मौन हैं' यह कहने का कोई औचित्य तब होता जब तितलियाँ कभी बोलती होतीं.
सादर
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