2122 2122 212
जख्म देकर मुस्कुराना आ गया ।
आपको तो दिल जलाना आ गया ।।
काफिरों की ख़्वाहिशें तो देखिये ।
मस्जिदों में सर झुकाना आ गया ।।
दे गयी बस इल्म इतना मुफलिसी ।
दोस्तों को आजमाना आ गया ।।
एक आवारा सा बादल देखकर ।
आज मौसम आशिकाना आ गया ।।
क्या उन्हें तन्हाइयां डसने लगीं ।
बा अदब वादा निभाना आ गया ।।
नज़्म जब लिखने चली मेरी कलम ।
याद फिर तेरा फ़साना आ गया ।।
उठ गया पर्दा जो मेरे इश्क़ से ।
बीच में सारा ज़माना आ गया ।।
जब मयस्सर हो गईं रातें सियाह ।
जुगनुओं को जगमगाना आ गया ।।
मुस्कुराता चाँद जब निकला कोई ।
गीत मुझको गुनगुनाना आ गया ।।
हो गए घायल हजारों दिल यहाँ ।
वार उसको कातिलाना आ गया ।।
तिश्नगी देती है कुछ मजबूरियां ।
अब उन्हें चिलमन हटाना आ गया ।।
--नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
Comment
आ0 रक्षिता सिंह जी ग़ज़ल तक आने के लिए हार्दिक आभार ।
आदरणीय नवीन जी नमस्कार
बहुत ही खूबसूरत गजल, आनन्द आ गया...
शेर दर शेर दाद के साथ मुबारकबाद कुबूल फरमायें ..!
जनाब आशीष जी
जनाब गुमनाम जी
जनाब नीरज जी,
आप सब ग़ज़ल तक आये इसके लिए तहे दिल से शुक्रियः आभार ।
आ0 महेंद्र कुमार साहब हार्दिक आभार ।
आ0 सुशील शरण साहब विशेष आभार । तहे दिल से शुक्रियः ।
आ0 नीलम उपाध्याय जी आप ग़ज़ल तक आईं इसके लिए तहे दिल शुक्रियः ।
आ0 तेजवीर सिंह साहब हार्दिक आभार । आपकी मेरी ग़ज़लों पर निरंतर उपस्थिति आपके अतुलनीय स्नेह का स्पष्ट प्रमाण देती है । आपकी टिप्पणियां मुझे ऊर्जावान करती हैं । पुनः आभार ।
आ0 सुरेंद्र नाथ सिंह कुश क्षत्रप जी हार्दिक आभार । अधिक अशआर लिखना मेरी बुरी आदत हो सकती है लेकिन अभ्यास के तौर पर मैं इसे सकारात्मकता के साथ स्वीकार करता हूँ । सोचता हूँ कि 11 शेर लिख डालूं हो सजता है उसमें से अच्छे शेर की संख्या बढ़ जाए ।
आ0 कबीर सर आपकी इस्लाह मेरे लेखन के लिए अत्यंत महत्व पूर्ण होती है । आपकी कृपा ऐसे ही बनी रहे तो मुझे भी एक दिन गज़ल लिखनी आ जायेगी । सादर नमन के साथ आभार ।
आद0 नवीन मणि जी सादर अभिवादन। बढ़िया ग़ज़ल पर बधाई। आपकी खासियत यह है कि आप ग़ज़ल में काफी अशआर लेकर आते हैं ।
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