For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मुझको गले लगाती है(ग़ज़ल)

 मुझको गले लगाती है।

 तब जाकर फुसलाती है।।

 कितने मरते होंगे जब।

 होठ चबा मुस्काती है।।

 चूम चूमकर आँखों से।

 मेरा दर्द बढ़ाती है।।

 जलन चाँद को होती है।

 वो छत पे जब आती है।।

 छिपकर देखा करती है।

 मैं देखूँ छिप जाती है।।

 2222222

मौलिक अप्रकाशित

 राम शिरोमणि पाठक

Views: 527

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by ram shiromani pathak on May 10, 2018 at 7:35am

अमुल्य सुझाव हेतु हार्दिक आभार आपका खान साहब।।

यूँ कर लिया है।

मुझको गले लगाती है।
तब जाकर फुसलाती है।।

कितने जलते होंगे जब।
मुझसे वो बतियाती है।।

चूम चूमकर आँखों से।
मेरा दर्द बढ़ाती है।।

देखा करती है छिपकर।
मैं देखूँ छिप जाती है।।

जलता है ये चाँद बहुत।
वो छत पे जब आती है।।

राम शिरोमणि पाठक

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on May 9, 2018 at 8:57pm

जनाब राम शिरोमणि साहिब , ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है ,मुबारक बाद क़ुबूल फरमायें। जनाब समर साहिब और जनाब नीलेश जी की बातों का संज्ञान लें ।शेर2 सानी यूँ कर सकते हैं " हँसी वो लब पे लाती है "। सही शब्द छुप है छिप नहीं ,देखियेगा ।

Comment by ram shiromani pathak on May 9, 2018 at 5:02pm

जी बहुत बहुत आभार कबीर साहब

Comment by Samar kabeer on May 9, 2018 at 4:54pm

'होती जलन है चाँद को'

ये मिसरा बह्र में नहीं है,इसे यूँ करें:-

'जलता है ये चाँद बहुत

वो छत पे जब आती है'

Comment by ram shiromani pathak on May 9, 2018 at 4:20pm

कबीर साहब सुझाव हेतु हार्दिक आभार।।

देखा करती है छिपकर।

मैं देखूँ छिप जाती है।।

होती जलन है चाँद को।

वो छत पे जब आती है।।

शायद दोष अब दूर हो गया

Comment by Samar kabeer on May 9, 2018 at 3:05pm

जनाब राम शिरोमणि पाठक जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

'जलन चाँद को होती है

वो छत पे जब आती है'

'छिप कर देखा करती है

मैं देखूँ छिप जाती है'

इन दोनों अशआर में तक़ाबुल-ए-रदीफ़ का दोष है,इसे बदलने का प्रयास करें ।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 9, 2018 at 10:52am

आ. रामशिरोमणि जी,
अच्छी ग़ज़ल हुई है ...  मुस्काती शब्द ठीक नहीं है ..अस्ल शब्द मुस्कुराती है ..
ग़ज़ल के लिए बधाई 
सादर  

Comment by ram shiromani pathak on May 9, 2018 at 8:26am

आरिफ़ भाई इस मुहब्बत के बहुत बहुत आभार आपका।।आगे से ध्यान रखूंगा

Comment by Mohammed Arif on May 9, 2018 at 7:57am

आदरणीय राम शिरोमणी जी आदाब,

                          कठिन बह्र पर बहुत ही अच्छे अश'आर । शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल करें । आपने अर्कान नीचे लिखें हैंं । प्राय: अर्कान ग़ज़ल के ऊपर लिखें जाते हैं । बाक़ी गुणीजन आपनी राय देंगे ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपने क्या ही खूब दोहे लिखे हैं। आपने दोहों में प्रेम, भावनाओं और मानवीय…"
20 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए शेर-दर-शेर दाद ओ मुबारकबाद क़ुबूल करें ..... पसरने न दो…"
30 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेन्द्र जी समाज की वर्तमान स्थिति पर गहरा कटाक्ष करती बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने है, आज समाज…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
Wednesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
Tuesday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"सराहना और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी"
Tuesday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लघुकथा पर आपकी उपस्थित और गहराई से  समीक्षा के लिए हार्दिक आभार आदरणीय मिथिलेश जी"
Tuesday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आपका हार्दिक आभार आदरणीया प्रतिभा जी। "
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लेकिन उस खामोशी से उसकी पुरानी पहचान थी। एक व्याकुल ख़ामोशी सीढ़ियों से उतर गई।// आहत होने के आदी…"
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"प्रदत्त विषय को सार्थक और सटीक ढंग से शाब्दिक करती लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय…"
Sep 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदाब। प्रदत्त विषय पर सटीक, गागर में सागर और एक लम्बे कालखंड को बख़ूबी समेटती…"
Sep 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service