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नश्वरता ....

तुम
कहाँ पहचान पाए
उस बुनकर की
आदि और अंत की
अनंत बुनती को

तुम
बुनकर बन
असफल प्रयास करते रहे
विधि के बनाये
आदि और अंत के
नग्न शरीर की
कृति पर
सच-झूठ ,अच्छा-बुरा ,
तेरा-मेरा ,पाप-पुण्य की सजावट से
दुनियावी वस्त्रों को
अलंकृत करने का

मैं
धागा था
तुम्हारे दर्द का
तुम
बुनकर हो कर भी
मुझे न पहचान पाए

जानते हो
उसकी
और
तुम्हारी
बुनती
क्या फ़र्क है
उसकी बुनती
अमरत्व को जन्म देती है
तुम्हारी बुनती
नश्वरता को


सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 620

Comment

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Comment by Sushil Sarna on May 4, 2018 at 5:19pm

आदरणीय हर्ष महाजन जी सृजन आपकी मधुर प्रशंसा का आभारी है।

Comment by Sushil Sarna on May 4, 2018 at 5:19pm

आदरणीया बबितागुप्ता जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से शुक्रिया।

Comment by Sushil Sarna on May 4, 2018 at 5:19pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन की प्रशंसा का दिल से आभार।

Comment by Sushil Sarna on May 4, 2018 at 5:18pm

आदरणीय नीलेश जी सृजन के भावों को आत्मीय मान देने का दिल से आभार।

Comment by Sushil Sarna on May 4, 2018 at 5:18pm

आदरणीय समर कबीर साहिब , आदाब .... सृजन पर आपकी मन मुदित करती प्रशंसा का दिल से आभारी है।

Comment by Sushil Sarna on May 4, 2018 at 5:18pm

आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी सृजन को मान देने का दिल से आभार।

Comment by Harash Mahajan on May 4, 2018 at 2:15pm

अति सुंदर सृजन आदरणीय सुशील जी |

सादर |

Comment by babitagupta on May 4, 2018 at 1:34pm

आदरणीय सर जी,मायावी दुनियां की उधेड़बुन में हुए मानव की नश्वरता की अच्छी  प्रस्तुति ,बधाई स्वीकार कीजिएगा.

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 3, 2018 at 7:25pm

आ. भाई सुशील जी, बेहतरीन रचना हुई है । हार्दिक बधाई ।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 3, 2018 at 10:38am

आ. सुशिल जी,
अच्छी प्रभावशाली रचना हुई है .. बहुत बहुत बधाई 
सादर 

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