For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल नूर की- ख़ुद को क़िस्सा-गो समझे है हर क़िरदार कहानी में

२२/२२/२२/२२/२२/२२/२२/२
.
ख़ुद को क़िस्सा-गो समझे है हर क़िरदार कहानी में
क़तरा ख़ुद को माने समुन्दर  जाने किस नादानी में.  
.
कैसा हिटलर कौन हलाकू, साहिब गर्मी काहे की
इक दिन सब को जाना है इतिहास की कूड़े दानी में.
.
तैर नहीं सकते थे माना लेकिन चल तो सकते थे
डूब मरे हैं कुछ बेचारे टखनों से कम पानी में.  
.
जादू का इक झूठा कपड़ा पहने फिरते हैं साहिब
और ठगों की पौ-बारह है उनकी इस उर्यानी में.
.
पहले जिस के लफ्ज़ लबों के पार न आने पाते थे,
शख्स वही इक सबसे माहिर निकला तल्ख़-बयानी में.  
.
देख के उन को हमने नकली ग़म का चेहरा पहन लिया,
उन की मुश्किल बढ़ जाती गर मिलते हम आसानी में.  
.
याद तुम्हे मैं कर लेता हूँ जब जी घुटने लगता है, 
डूब के साँसें पा जाता हूँ यादों की तुग्यानी में.       
.
जानें कब होंगे वो दाना जानें कब वो समझेंगे
वस्ल की रात गुज़र जाती है उनकी आनाकानी में.
.
नूर है मंज़िल “नूर” ही राही बस रस्ता अँधियारा है, 
दुनिया तुझ में यूँ रहता हूँ जैसे तेल हो पानी में.
.
पुछल्ला 

दुश्मन दुश्मन चिल्लाते हैं फिर भी गले लगाते हैं
सोचो कैसा स्वाद बसा है मरियम की बिर्यानी में.
.
निलेश "नूर" 
मौलिक/ अप्रकाशित 

Views: 1517

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 9, 2018 at 9:50pm

शुक्रिया आ. हर्ष जी 
आपको ग़ज़ल पसंद   आई यह जान कर उत्साहवर्धन हुआ है 
आभार 

Comment by Harash Mahajan on April 9, 2018 at 9:46pm

आदरणीय नूर साहब बहुत ही शब्दावली लिए आपकी ये पेशजश पढ़ने वाली के मन में लिखने का जनून पैदा करती है । हर शेर जोशीला है सर ।

"पहले जिस के लफ्ज़ लबों के पार न आने पाते थे,
शख्स वही इक सबसे माहिर निकला तल्ख़-बयानी में. " 

वाह .....जनाब

आजकल के माहौल पर पूरी तरह उतरती है सर

ख़ुद को क़िस्सा-गो समझे है हर क़िरदार कहानी में 
क़तरा ख़ुद को माने समुन्दर  जाने किस नादानी में.

खूब !!

मेरी जानिब से ढ़ेरों दाद, वसूल पाइयेगा ।

सादर!

Comment by Samar kabeer on April 9, 2018 at 9:30pm

'मुर्ग़' फ़ारस से आते आते 'मुर्गी' नहीं बना भाई,जो अंडे दे वो 'मुर्ग़ी' कहलाती है,और जो अंडे न दे वो 'मुर्ग़',यानी नर को मुर्ग़ कहते हैं और मादा को मुर्ग़ी, अब ये 'कूड़े दान',"कूड़े दानी" कैसे बना ये आप बहतर समझ सकते हैं,कोई विकल्प ज़रूर खोज लेंगे आप,इसका मुझे यक़ीन है ।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 9, 2018 at 7:47pm

धन्यवाद आ. अजय जी,
आप की टिप्पणी से संबल मिला है 
सादर 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 9, 2018 at 7:46pm

धन्यवाद आ. दिनेश जी,
आप को रचना पसंद आई सो लिखना सार्थक हुआ..
समर सर द्वारा इंगित त्रुटी पर काम करना पड़ेगा अब..
आभार 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 9, 2018 at 7:45pm

धन्यवाद आ. समर सर,
मेरे टाइपिंग सॉफ्टवेर में कहीं कहीं नुक्ते लगते ही नहीं है   इसलिए ये त्रुटियाँ हो जाती हैं.. आगे से और ध्यान रखूँगा ..अभी मूल प्रति में सुधार लेता हूँ..  यहीं से कॉपी   कर के ..
.
रही बात कूड़ेदानी की तो मैं आपसे पूर्णत: सहमत हूँ कि  सही शब्द कूड़ेदान है लेकिन जैसे मुर्ग फारस से हिन्द तक आते आते मुर्गी  गया,   कूड़ेदान भी कूड़ेदानी  हो गया है अत: मैं इसे फ़िलहाल यूँ ही रखने के पक्ष में हूँ जबतक कोई अन्य योग्य काफिया न मिल जाय 
.
बहुत बहुत आभार 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 9, 2018 at 7:40pm

धन्यवाद आ. डॉ. आशुतोष जी 
आभार 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 9, 2018 at 7:39pm

धन्यवाद आ. बसंत कुमार जी 
आभार 

Comment by Ajay Tiwari on April 9, 2018 at 7:10pm

आदरणीय निलेश जी, हर शेर खूबसूरत है. एक और बहुत उम्दा ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई

Comment by दिनेश कुमार on April 9, 2018 at 6:37pm

वन मोर मास्टरपीस, बहुत ख़ूब, आदरणीय निलेश सर। क्या कहने हैं। ख़ास बात यह लगी कि कमाल की रवानी है। सार्थक शब्द-चयन। वाह वाह वाह

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय Richa Yadav जी आदाब  ग़ज़ल के अच्छे प्रयास पर बधाई स्वीकार करें  2122 2122 2122…"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"2122 2122 2122 212 हंस उड़ने पर भला तन बोल क्या रह जाएगाआदमी के बाद उस का बस कहा रह जाएगा।१।*दोष…"
1 hour ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"नमन मंच 2122 2122 2122 212 जो जहाँ होगा वहीं पर वो खड़ा रह जाएगा ज़श्न ऐसा होगा सबका मुँह खुला रह…"
2 hours ago
Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।"ओबीओ…See More
6 hours ago
Sushil Sarna commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"आदरणीय रामबली जी बहुत ही उत्तम और सार्थक कुंडलिया का सृजन हुआ है ।हार्दिक बधाई सर"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
" जी ! सही कहा है आपने. सादर प्रणाम. "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी, एक ही छंद में चित्र उभर कर शाब्दिक हुआ है। शिल्प और भाव का सुंदर संयोजन हुआ है।…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति स्नेह और मार्गदर्शन के लिए बहुत बहुत…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"अवश्य, आदरणीय अशोक भाई साहब।  31 वर्णों की व्यवस्था और पदांत का लघु-गुरू होना मनहरण की…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय भाई लक्षमण धामी जी सादर, आपने रचना संशोधित कर पुनः पोस्ट की है, किन्तु आपने घनाक्षरी की…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी   नन्हें-नन्हें बच्चों के न हाथों में किताब और, पीठ पर शाला वाले, झोले का न भार…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति व स्नेहाशीष के लिए आभार। जल्दबाजी में त्रुटिपूर्ण…"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service