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एक अतुकांत रचना :फरियाद: मनोज अहसास

एक दुआ
साथ देने की गुजारिश के साथ

जाने अबकी बार खुदाया कैसी पूर्णमासी है
चाँद के पूरे दीदार की चाहत सुलग रही है माथे पर
और पैरों को हिला रहा है डर मंज़र खो देने का
सूनी आँखे ढूंढ रही हैं अपनी क्षमता से दूर
घुटने टेके, हाथ पसारे ,दुआ सहारे
हर दम
मर्यादा से बँधे खड़े हैं
और अम्बर का कैसा नज़ारा
इन नज़रों को सता रहा है
पेड़ों के पीछे चाँद के आने की आहट से
धड़ धड़ सीना धड़क रहा है
लेकिन
जो अंधियारे ,गहरे, काले बादल गरज रहे हैं
उनसे इन आँखों को डर लगता है
निगल न जायें ढककर वो अम्बर की छाती
चाँद का चेहरा
या बरस बरस का धुल न जाये उम्मीद हमारी
हाथ पसारे ,नैन झुकाएं, घुटने टेके
तुझसे दुआएं मांग रहे हैं मेरे मौला
चाँद का चेहरा
चाँद की रौनक
चाँद की आमद
एक झौका बस मधुर हवा ऐसा आये
जिसमे उड़ जाए मालिक ये
सारे चिंताओं के बादल
सारे दुविधाओं के बादल
और दरख्तों से ऊँचा होकर
चमक उठे उम्मीद का चाँद
मेरे मालिक .........
तेरी रहमत.......
तेरे इशारे की चाहत.......

मौलिक और अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by Neelam Upadhyaya on April 3, 2018 at 3:49pm

आदरणीय मनोज कुमार जी, अच्छी रचना पर बधाई । 

Comment by Samar kabeer on April 3, 2018 at 10:55am

जनाब मनोज कुमार अहसास जी आदाब,अच्छी कविता है, बधाई स्वीकार करें ।

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