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खुली आँखें हैं और सोया हुआ हूँ ...संतोष

अरकान:-
मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन फ़ऊलुन

खुली आँखें हैं,पर सोया हुआ हूँ
तुम्हारी याद में डूबा हुआ हूँ।।


बदन इक दिन छुआ था तुमने मेरा
उसी दिन से बहुत महका हुआ हूँ।।


मुझे पागल समझती है ये दुनिया
तसव्वुर में तेरे खोया हुआ हूँ।।


जहाँ तुम छोड़कर मुझको गये थे
उसी रस्ते पे मैं बैठा हुआ हूँ।।


ख़ुदा का है करम 'संतोष' मुझ पर
हर इक महफ़िल पे मैं छाया हुआ हूँ।।

#संतोष_खिरवड़कर

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by santosh khirwadkar on April 3, 2018 at 10:43am

शुक्रिया ,आ.भाई श्री निलेश जी ...

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 2, 2018 at 9:26am

शायद यूँ होता तो अर्थपूर्ण होता ..
.
खुली आँखें हैं,पर "खोया" हुआ हूँ

तुम्हारी याद में डूबा हुआ हूँ।।
.
सादर 

Comment by santosh khirwadkar on April 1, 2018 at 11:36am

आदरणीय श्री समर साहब प्रणाम स्वीकारें!!!

धन्यवाद/आभार!!!!

Comment by santosh khirwadkar on April 1, 2018 at 11:34am

आदरणीय आरिफ़ साहब,शुक्रिया!!!

Comment by santosh khirwadkar on April 1, 2018 at 11:33am

आ.आशुतोष जी धन्यवाद!!!!

Comment by santosh khirwadkar on April 1, 2018 at 11:32am

आदरणीय भाई श्री निलेश जी शुक्रिया!! आप सही हैं किन्तु मैंने इसलिए भी आँखे खुली लिखा,बंद आँखों में तो चेतन मस्तिष्क भी क्रियाशील नहीं होता ,तो उसकी याद में डूबता कैसे???

Comment by Samar kabeer on March 31, 2018 at 5:53pm

जनाब संतोष जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है, बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Mohammed Arif on March 31, 2018 at 5:53pm

आदरणीय संतोष जी आदाब,

                शे'र दर शे'र दाद के साथ दिली मुबारकबाद क़ुबूल करें ।

Comment by Dr Ashutosh Mishra on March 30, 2018 at 2:33pm

आदरणीय संतोष जी रचना के लिए हादिक बधाई ..आदरणीय भाई निलेश जी का मशविरा बिलकुल सही है ...सादर 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 29, 2018 at 7:52pm

आ. संतोष दादा.. 
अच्छी ग़ज़ल हुई है ... भाव पक्ष पर मतले में एक   विसंगति है ..
.
खुली आँखें हैं,पर सोया हुआ हूँ
तुम्हारी याद में डूबा हुआ हूँ।।.... यदि याद में डूबे हैं तो चेतन मस्तिष्क क्रियाशील है अत: वो नींद या सोना नहीं है ..जो सानी के भाव के विपरीत अवस्था है ..
सादर  

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