For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

2122 2122 212
बाअदब सब हाथ जोड़े हैं खड़े
झाड़ते तकरीर बिगड़े मनचले।1

मामला लंबा चलेगा,सोचकर
कातिलों ने साक्ष्य ही निपटा दिए।2

फिर गवाहों को यहाँ ढूँढा गया,
जो जहाँ जैसे मिले,कटते रहे।3

थे विचाराधीन जो भी कैद में
देखिए अब तो बरी वे हो चले।4

फिर सिसकती आत्मा,कहने लगी---
'कब तलक मैं यूँ रहूँगी मुँह सिए?'5

आँख का अंधा हकीकत तोलता
है गुमां निर्दोष को फाँसी न दे।6

दे चुका अपनी गवाही आदमी
उज्र लाशों के कहीं मत्थे चढ़े।7

सिर खपाता है सिपाही बैठकर
थक गया है मामला कैसे बने।8

फिर फिजाओं ने हवा दी ---कर 'मनन',
आँसुओं के बोझ दिल पे हैं धरे।9
"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 771

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Manan Kumar singh on November 1, 2017 at 8:29pm
आभारी हूँ आदरणीय सलीम जी।
Comment by SALIM RAZA REWA on October 24, 2017 at 12:52pm
आ. मनन कुमार जी
ख़ूबसूरत ग़ज़ल के लिए मुबारक़बाद
Comment by Manan Kumar singh on October 22, 2017 at 6:57pm
आभारी हूँ आदरणीय
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 22, 2017 at 5:52pm
खूब ग़ज़ल हुई आदरणीय सादर बधाई।
Comment by Manan Kumar singh on October 22, 2017 at 5:11pm
मेरे लिए 'आदरणीय' ही है।
Comment by Manan Kumar singh on October 22, 2017 at 5:10pm
आदरणीय कालीपद जी,शुक्रिया। मेरे 'आदरणीय' पर्याप्त है,सादर।
Comment by Manan Kumar singh on October 22, 2017 at 5:09pm
आदरणीय अजय जी,आपका आभार।
Comment by Manan Kumar singh on October 22, 2017 at 5:08pm
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय आरिफ जी।
Comment by Manan Kumar singh on October 22, 2017 at 5:07pm
आभारी हूँ आदरणीय अफरोज जी।
Comment by Kalipad Prasad Mandal on October 22, 2017 at 3:16pm

आदरणीया मनन जी , खुबसूरत ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार करें 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"हर कहानी को कई रूप रुहानी लिखना जाविया दे कहीं हर बात नूरानी लिखना मौलवी हो या वो मुल्ला कहीं…"
23 minutes ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"सहृदय शुक्रिया आदरणीय ग़ज़ल पर इस ज़र्रा नवाज़ी का"
1 hour ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"सहृदय शुक्रिया आदरणीय दयाराम जी ग़ज़ल पर इस ज़र्रा नवाज़ी का"
1 hour ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"सादर आदरणीय सौरभ जी आपकी तो बात ही अलग है खैर जो भी है गुरु जी आदरणीय समर कबीर ग़ज़ल के उस्ताद हैं…"
1 hour ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"जी शुक्रिया आदरणीय मंच के नियमों से अवगत कराने के लिए"
1 hour ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय मिथलेश जी, गलती से ऐसा हो गया था। आपकी टिप्पणी के पश्चात ज्ञात हुआ तो अब अलग से पोस्ट कर दी…"
1 hour ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"ग़ज़ल - 2122 1122 1122 22 काम मुश्किल है जवानी की कहानी लिखनाइस बुढ़ापे में मुलाकात सुहानी लिखना-पी…"
2 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"मेरी समर साहब से तीन दिन पहले ही बातें हुई थीं। उनका फोन आया था। वे 'दुग्ध' शब्द की कुल…"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, आपने शानदार ग़ज़ल कही है। गिरह भी खूब लगाई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई…"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय लक्ष्मण धामी मुसाफ़िर जी, आपने बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई…"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय दयाराम मैठानी जी आपकी प्रस्तुति जयहिंद जी की प्रस्तुति की रिप्लाई में पोस्ट हो गई है। कृपया…"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है हार्दिक बधाई स्वीकारें। इन अशआर की तक्तीअ देख…"
3 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service