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जीभ ख़ुद की है तो दांतों से दबा भी न सकूँ
कैसे खामोश रहे इस को सिखा भी न सकूँ
उनका वादा है कि ख़्वाबों में मिलेंगे मुझसे
मुंतज़िर चश्म को अफसोस सुला भी न सकूँ
तश्नगी देख मेरी आज समन्दर ने कहा
कितना बदबख़्त हूँ मैं प्यास बुझा भी न सकूँ
मेरे रस्ते में जो रखना तो यूँ पत्थर रखना
कोशिशें लाख करूँ यार हिला भी न सकूँ
यहाँ तो सिर्फ अँधेरों के तरफदार बचे
छिपा रक्खा है, चराग़ों को , जला भी न सकूँ
आपके झूठ रहे पर्दे में ये हसरत थी
पर हूँ मज़बूर कि आईना छिपा भी न सकूँ
ज़ह’न ए नाबीना लिये आये हैं महफिल में उन्हें
सख्त मुश्किल है कि आईना दिखा भी न सकूँ'
ख़ुदी पर जिसका यक़ीं हो नहीं वो कहता है
"ये वो क़िस्मत का लिखा है जो मिटा भी न सकूँ ‘’
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
आदरणीय नीरज भाई , पुनः मेरी गज़ल पर उपस्थित हो कर समय और सलाह देने के लिये आपका हृदय से आभार । आपकी सलाह मेरी समझ मे भी उचित है , मै तदानुसार सुधार कर रहा हूँ , पुनः आभार ।
आदरणीय मित्रों कुछ घरेलू व्यस्तताओं के कारण आभार प्रदर्शन मे हुई देरी के लिये क्षमाप्रार्थी हूँ ।
आदरनीय बृजेश भाई , हौसला अफ्ज़ाई का शुक्रिया आपका ।
आदरणीय मित्रों कुछ घरेलू व्यस्तताओं के कारण आभार प्रदर्शन मे हुई देरी के लिये क्षमाप्रार्थी हूँ ।
आदरणीय आशुतोष भाई , गज़ल की सराहना के लिये आपका हृदय से आभार ।
आदरणीय ,
ज़ह'न नाबीना -- अंधी मानसिकता
आदरणीय मित्रों कुछ घरेलू व्यस्तताओं के कारण आभार प्रदर्शन मे हुई देरी के लिये क्षमाप्रार्थी हूँ
आदरणीय शिज्जु भाई , हौसला अफज़ाई के ल्लिये आपका हार्दिक आभार ।
आदरणीय मित्रों कुछ घरेलू व्यस्तताओं के कारण आभार प्रदर्शन मे हुई देरी के लिये क्षमाप्रार्थी हूँ ।
आ.समर भाई, सुधार से सहमति क्र लिय्र आपका आभार।
आदरणीय मित्रों कुछ घरेलू व्यस्तताओं के कारण आभार प्रदर्शन मे हुई देरी के लिये क्षमाप्रार्थी हूँ
आ.तस्दीक भाई उत्साह वर्धन के लिये आपका हृदय से आभारी हूँ , आपकी सलाह भी उचित है , और भी सलाहें आईं है , फैसला कर के सुधार अवश्य करूँगा । आभार आपका ।
आदरणीय गिरिराज जी,
यूँ तो मतला अब ठीक है पर कुछ और विकल्पों पर भी सोचा जा सकता है :
और चुप रहना किसी तौर सिखा भी न सकूँ
इसको चुप रहना किसी तौर सिखा भी न सकूँ
कैसे खामोश रहे इस को सिखा भी न सकूँ (ऊला में 'जीभ' हैं तो फिर सानी में 'जुबां' जरूरी नहीं है)
निश्चित तौर पर आपने भी अब तक कुछ और मिसरे सोच लिए होंगे. अंतत निर्णय तो आपको ही लेना होगा. मैं निर्णय नहीं ले पाता अच्छा हुआ शायर नहीं हुआ वर्ना कोई ग़ज़ल पूरी नहीं कर पाता.
सादर
अच्छी गज़ल है आ. गिरिराज जी बहुत बहुत बधाई, सारे अश्आर विशिष्टता लिए हुए है
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