२१२२ १२१२ २२
खामशी की जबान समझो ना
अनकही दास्तान समझो ना
सामने हैं मेरी खुली बाहें
तुम इन्हें आस्तान समझो ना
ये गुजारिश सही मुहब्बत की
तुम खुदा की कमान समझो ना
स्याह काजल बहा जो आँखों से
हैं वफ़ा के निशान समझो ना
बस गए हो मेरी इन आँखों में
इनमें अपना जहान समझो ना
झुक गया है तुम्हारे कदमों में
ये मेरा आसमान समझो ना
खींच लाती कोई कशिश हमको
रब्त है दरमियान समझो ना
आस्तान =भगवान् की मूरती तक पंहुचने का द्वार
कमान=हुक्म /आदेश
---मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आद० सुशील सरना जी आपको ग़ज़ल पसंद आई दिल से बहुत बहुत शुक्रिया |
झुक गया है तुम्हारे कदमों में
ये मेरा आसमान समझो ना
वाह आदरणीया राजेश कुमारी जी बहुत ही शानदार अशआर कहे है आपने। इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें।
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