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ग़ज़ल...हर कदम पर जह्न मेरा आजमाता कौन है-बृजेश कुमार 'ब्रज'

2122 2122 2122 212
वेदना के तार झंकृत,गीत गाता कौन है
दर्द की ये रागनी आखिर सुनाता कौन है

कौन है ये रात के आगोश में सिमटा हुआ
चाँदनी की ओट लेकर मुस्कुराता कौन है

बादलों के पार से आवाज थी किसकी सुनी
ओढ़कर घूँघट घटा का ये लजाता कौन है

गुँजतीं हैं आहटें खामोशियों को चीरती
हर कदम पर जह्न मेरा आजमाता कौन है

चल रही पुरवा बसन्ती मुस्कुरा कर झूमती
लेके थाली आरती की गुनगुनाता कौन है
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'

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Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on August 10, 2017 at 5:22pm
आपके दौनों सुझाव बेहद खूबसूरत हैं आदरणीय शुक्ला जी..विशेषकर मतले की खूबसूरती इस बदलाव से बहुत बढ़ जायेगी।यूँ ही मंगदर्शन करते रहे..सादर
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on August 10, 2017 at 5:20pm
आदरणीय आरिफ जी हौसलाफजाई के लिए आपका हार्दिक आभार..सादर
Comment by Ravi Shukla on August 10, 2017 at 3:13pm

आदरणीय सुरेन्‍द्र जी आपकी भावनाओं का हम सम्‍मान करते है पर गुरुदेव जैसा संबोधन हमारे लिये ठीक नहीं हम भी अभी आपकी तरह सीख ही रहे है

Comment by नाथ सोनांचली on August 10, 2017 at 1:14pm
आद0बृजेश जी सादर अभिवादन, ग़ज़ल बढ़िया है, आद0 गुरुदेव रवि जी से सहमत हूँ। बधाई आपको
Comment by Ravi Shukla on August 10, 2017 at 12:37pm

आदरणीय बृजेश कुमार जी बहुत अच्‍छी गजल कही आपने शेर दर शेर के साथ मुबारक बाद पेश करते है

मतले के दोनो मिसरों को आपस में बदल कर देखिये उला का सानी करें और सानी को उला

उर्दू में जह्न 21 के वज्‍न में है अगर यही मानते है तो मिसरे में सुधार अपेक्षित है नहीं तो जहर शहर के अनुसार इसे भी 12 मे आप भी ले सकते है  ( हर कदम पर जह्न मेरा आजमाता कौन है)  एक त्‍वरित सुझाव है । सादर

Comment by Mohammed Arif on August 10, 2017 at 11:31am
बादलों के पार से आवाज थी किसकी सुनी
ओढ़कर घूँघट हया का ये लजाता कौन है । बहुत ही ख़ूबसूरत शे'र ।
शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल कीजिए आदरणीय बृजे कुमार जी ।

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