For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

।। 2122 2122 2122 212 ।।

पूछिये मत क्यो हमारी शोखियाँ कम पड़ गईं ।
जिंदगी गुजरी है ऐसे आधियाँ कम पड़ गईं ।।

भूंख के मंजर से लाशों ने किया है यह सवाल ।
क्या ख़ता हमसे हुई थी रोटियां कम पड़ गईं ।।

जुर्म की हर इंतिहाँ ने कर दिया इतना असर ।
अब हमारे मुल्क में भी बेटियां कम पड़ गईं ।।

मान् लें कैसे उन्हें है फिक्र जनता की बहुत ।
कुर्सियां जब से मिली हैं झुर्रियां कम पड़ गईं ।।

इस तरह बिकने लगी है मीडिया की शाख भी ।
जब लुटी बेटी की इज्जत सुर्खियां कम पड़ गईं ।।

मैच फिर खेला गया कुर्बानियो को भूलकर ।
चन्द पैसों के लिए रुसवाइयाँ कम पड़ गईं ।।

मत कहो हीरो उन्हें तुम वे खिलाड़ी मर चुके ।
दुश्मनों के बीच जिनकी खाइयां कम पड़ गईं ।।

हो गया नीलाम बच्चों की पढ़ाई के लिए ।
जातियों के फ़लसफ़ा में रोजियाँ कम पड़ गईं ।।

क्यो शह्र जाने लगा है गांव का वह आदमी ।
नीतियों के फेर में आबादियां कम पड़ गईं ।।

देखते ही देखते क्यो लुट गया सारा अमन ।
कुछ लुटेरों के लिए तो बस्तियां कम पड़ गईं ।।

सिर्फ अपने ही लिए जीने लगा है आदमी ।
देखिए अहले चमन में नेकियाँ कम पड़ गईं ।।

यह सही है बेचने वह भी गया ईमान को ।
गिर गई बाज़ार उसकी बोलियाँ कम पड़ गईं ।।

--- नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित

Views: 505

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Naveen Mani Tripathi on June 11, 2017 at 5:17pm
आ0 बृजेश कुमार ब्रज जी शुक्रिया
Comment by Naveen Mani Tripathi on June 11, 2017 at 5:16pm
आ0 मो0 आरिफ साहब शुक्रिया
Comment by Naveen Mani Tripathi on June 11, 2017 at 5:16pm
आ0 महेंद्र कुमार जी आभार
Comment by Mohammed Arif on June 10, 2017 at 10:06pm
आदरणीय नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब, बहुत ही बेहतरीन, लाजवाब ग़ज़ल । हार्दिक बधाई स्वीकार करें । आदरणीय महेंद्र कुमार जी की बातों पर ग़ौर करें ।
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on June 10, 2017 at 8:42pm
वाह बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही आदरणीय..सादर
Comment by Mahendra Kumar on June 10, 2017 at 4:35pm

आ. नवीन जी, बढ़िया ग़ज़ल कही है आपने. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. 

//जातियों के फ़लसफ़ा में रोजियाँ कम पड़ गईं// मुझे लगता है यहाँ पर "फ़लसफ़े" होना चाहिए.

//गिर गई बाज़ार उसकी बोलियाँ कम पड़ गईं// और यहाँ पर "गिर गया बाज़ार".

कुछ टंकण त्रुटियाँ भी हैं. देख लीजिएगा. पुनः बधाई. सादर.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
2 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
2 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
19 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
19 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
19 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
19 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
19 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
19 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
19 hours ago
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
22 hours ago
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
22 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दिनेश जी, बहुत धन्यवाद"
22 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service