For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मापनी २२१ १२२२ २२१ १२२२

 

नफरत के किले सारे, अब हमको ढहाना है
जब हाथ मिलाया है, दिल को भी मिलाना है

चुपचाप  न बैठोगे,  पाओगे  सदा  मंजिल,
दुश्मन है तरक्की का, आलस को भगाना है
 
बारूद के ढेरों  पर,  इंसान  यहाँ  बैठा,  
आतंक के परचम को, दुनिया में झुकाना है

हर रोज हमें खलती, पानी की कमी बेशक,
पर फूल मरुस्थल में, हमको ही खिलाना है

वादा जो किया तुमने, हर हाल निभा देना,
ये प्यार की दुनिया है, चलता न बहाना है

हों लाख कड़े पहरे, दरिया के किनारों पर

इस प्रेम के दरिया में, डुबकी तो लगाना है

 

खुशियाँ हों भले थोड़ी, मिल साथ मना लेना,

भरमार  गमों  की  है, कोई न ठिकाना है

 ''मौलिक एवं अप्रकाशित'' 

Views: 516

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बसंत कुमार शर्मा on June 6, 2017 at 8:54am

आदरणीय Mahendra Kumar  जी आपकी हौसला अफजाई के लिए ह्रदय से आभार 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on June 6, 2017 at 8:54am

आदरणीय Mohammed Arif जी आपकी हौसला अफजाई के लिए ह्रदय से आभार 

Comment by Mahendra Kumar on June 5, 2017 at 8:26pm

हर रोज हमें खलती, पानी की कमी बेशक,
पर फूल मरुस्थल में, हमको ही खिलाना है ...वाह! 

बढ़िया ग़ज़ल है आ. बसंत जी. मेरी तरफ़ से हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.

Comment by Mohammed Arif on June 5, 2017 at 4:42pm
आदरणीय बसंत कुमार शर्मा जी आदाब, एक और धमाकेदार ग़ज़ल का आगाज़ । शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल कीजिए ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
yesterday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service