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ग़ज़ल - तुमसे मन की बात हो गई

बहर- फैलुन*4

तुमसे मन की बात हो गई  

सावन सी बरसात हो गई,  

 

जब से आये हो जीवन में,

पूनम सी हर रात हो गई

 

नैनों से जब नैन मिले तो,

सपनों की बारात हो गई

 

दिल में तुमने हमें बसाया,

अपनी कुछ औकात हो गई

 

बात हुई थी जो भी गुप चुप,

अब तो सबको ज्ञात हो गई

 

''मौलिक एवं अप्रकाशित ''

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Comment by बसंत कुमार शर्मा on June 4, 2017 at 8:47pm

आदरणीय बृजेश कुमार 'ब्रज' जी आपका ह्रदय से आभार 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on June 4, 2017 at 11:12am
बहुत ही खूबसूरत भावरचना.. सादर
Comment by बसंत कुमार शर्मा on June 4, 2017 at 9:09am

आदरणीय Mohammed Arif  जी, हौसला अफजाई के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया 

Comment by Mohammed Arif on June 3, 2017 at 5:05pm
आदरणीय बसंत कुमार शर्मा जी आदाब, छोटी बह्र की बहुत सुंदर ग़ज़ल । हर शे'र उम्दा । दिली मुबारकबाद क़ुबूल करें ।

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