For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

'डोम' (एक लघु-कथा )

"जीवन के आखिरी समय में, सही गलत का तो हम नही जानते बेटा, लेकिन इस बात का दुःख हमें अवश्य है कि हमारे कर्मो की सजा तुम भोग रहे हो। हो सके तो हमे क्षमा......।" बाबा की अंतिम बातों को सोच छोटे ठाकुर की आँखें नम हो गयी।

लकड़ियाँ अब आग पकड़ चुकी थी और चिता से उठती लपटो में बड़े ठाकुर की देह विलीन होने लगी थी। पास खड़ा 'भैरू' साथ साथ लकडियां व्यवस्थित कर रहा था जबकि बढ़ती आंच से बचने के लिए बाकी सभी लोग थोडा पीछे हटने लगे थे। 'कुंवरजी' पहले ही दूर जा खड़े हुए थे। आजीवन कारावास की सजा के बीच 'पैरोल' पर गाँव आये छोटे ठाकुर भांजे कर्ण का हाथ थामें पास ही खड़े इन्ही विचारों में खोये हुए थे।

"बाबा, क्षमा तो मैंने आपको बहुत पहले ही कर दिया था। हाँ आरोप अवश्य मैंने जानबूझकर अपने ऊपर लिया था क्योंकि मैं जानता था कि आप अपने प्रभाव से कानून के शिंकजे से बच निकलते और यही मैं नहीं चाहता था। आखिर 'तम्या' के प्रति अपने अपराध का प्रायश्चित भी तो मुझे ही.......।"

"मामाजी मैं जरा पंडितजी को बुला कर लाया।" कर्ण की आवाज ने उन्हें विचारों के दायरे से बाहर खीच लिया और वह एक दीवार का सहारा ले खड़ा होने की कोशिश करने लगे। कर्ण अभी पंडितजी तक पहुँच भी नहीं पाया था कि वह स्वयं को संभाल नहीं पाये और नीचे गिर पड़े।

पास ही खड़े भैरू ने उन्हें दौड़ कर संभाला और पास ही पूजा की थाली में रखे बर्तन से उन्हें पानी पिलाने की कोशिश करने लगा।
बाकि लोग अभी स्थिति को समझ भी नहीं पाये थे कि कुँवरजी की दंबग आवाज से वहां कोहराम मच गया। "अरे नीच! ये क्या अनर्थ कर दिया? रहा न 'डोम' का 'डोम' ही।" और कुछ क्षण में ही भैरू दो चार लोगों के लात घूंसे खाकर जमीन पर गिरा पड़ा था।
अब तक छोटे ठाकुर भी कुछ सम्भल गए थे। उन्होंने सबको शांत करने की कोशिश की और कर्ण से भैरू को पास बुलाने का आग्रह किया।

"बेटा भैरू!" उन्होंने दुःखी होकर कहा। "इनके व्यवहार के लिए मैं तुमसे क्षमा मांगता हूँ, तूने तो मेरा भला ही करना चाहा था पर ये लोग....।"

"नहीं नहीं... ठाकुर साहब !" उनकी बात बीच में ही काट भैरू ने हाथ जोड़ दिए। "आप तो हमारे अन्नदाता है और ठीक तो है, हम है भी तो नीच जात।"

अनायास ही छोटे ठाकुर के चेहरे पर दर्द की एक लंबी लकीर खिंच गयी। उन्होंने भैरू का हाथ पकड़ा और धीरे धीरे 'बाबा' की चिता के सम्मुख जा खड़े हुये। "बेटा! ये जात-पांत ये ऊंच-नीच, ये सब तो समाज के बनाये हुए ढोंग है वर्ना आदमी खुद अपने जीवन में ही जाने कितनी बार 'डोम' बनता है, कभी तन से और कभी मन से....।" अपनी बात कहते कहते उनकी नज़रें बाबा की जलती चिता की तेज होती लपटो पर जा रुकी जहां वर्षो पहले इसी जगह पर उन्होंने बाबा को डोम बनकर तम्या की देह को जलती लपटों में राख करते देखा था।...... वही तम्या जिसने अपने प्रेम को साधिकार पाना चाहा था जबकि वह स्वयं उसके दैहिक समर्पण को ही प्रेम का सम्पूर्ण सार समझ बैठे थे।

"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 793

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by VIRENDER VEER MEHTA on July 19, 2017 at 5:21pm
आदरणीय भाई महेंद्र कुमार जी पहले तो कथा 'डॉम' पर आपकी समीक्षात्मक दृष्टी के लिए हार्दिक आभार... आपका ये प्रेम बना रहे, ऐसी ही कामना है.
आपने अपनी टिप्पणी में पात्रो के संख्या कुछ अधिक लगी, ऐसा कहा. पात्रो में केवल 'कुंवरजी' एक ऐसे पात्र है जिनका कथा से प्रत्यक्ष संबंध नहीं है अन्थया बाकी सभी पात्र तो कथा की मुख्यधारा में ही आतें है. ऐसा मुझे लग रहा है. बाकी आपकी अमूल्य राय के लिए अवश्य आभारी हूँ आदरणीय. सादर भाई जी
Comment by VIRENDER VEER MEHTA on July 19, 2017 at 5:10pm
भाई आशीष यादव जी आपकी प्रोत्साहन देती टिप्पणी के लिए दिल से हार्दिक आभार....
Comment by VIRENDER VEER MEHTA on July 19, 2017 at 5:09pm
आदरणीया कल्पना भट्ट जी लघुकथा 'डॉम' पर आपकी सुन्दर टिप्पणी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया.... सादर आदरणीया.
Comment by VIRENDER VEER MEHTA on July 19, 2017 at 5:07pm
भाई तेजवीर सिंह जी आपकी सुंदर और प्रोत्साहन देती टिप्पणी के लिए हार्दिक आभार....
Comment by Mahendra Kumar on June 5, 2017 at 7:13pm

//ये जात-पांत ये ऊंच-नीच, ये सब तो समाज के बनाये हुए ढोंग है वर्ना आदमी खुद अपने जीवन में ही जाने कितनी बार 'डोम' बनता है, कभी तन से और कभी मन से...// इन शब्दों के माध्यम से समाज को सार्थक सन्देश देती इस बढ़िया लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए आ. वीर मेहता जी. मुझे पात्रों की संख्या कुछ ज़्यादा लगी. सादर.

Comment by आशीष यादव on June 5, 2017 at 1:03pm

अत्यंत मार्मिक कथा।  सब कुछ स्पष्ट। 

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on June 2, 2017 at 2:56pm
Bahut badhiya katha hui hai aadrniya Veer ji . Marmik prastuti hai. Hardik badhayi aapko
Comment by TEJ VEER SINGH on June 2, 2017 at 12:52pm

हार्दिक बधाई आदरणीय वीर मेहता जी।बहुत मार्मिक प्रस्तुति।ग्रामीण परिवेश में फ़ैले ऊंच नीच के भ्रमजाल पर बेहतरीन कटाक्ष करती रचना। 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service