२१२२/२१२२/२१२२/२१२
बस किसी अवतार के आने का रस्ता देखना
बस्तियाँ जलती रहेंगी, तुम तमाशा देखना.
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छाँव तो फिर छाँव है लेकिन किसी बरगद तले
धूप खो कर जल न जाये कोई पौधा, देखना.
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देखने से गो नहीं मक़्सूद जिस बेचैनी का
हर कोई कहता है फिर भी उस को “रस्ता देखना”
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क़ामयाबी दे अगर तो ये भी मुझ को दे शुऊ’र
किस तरह दिल-आइने में अक्स ख़ुद का देखना.
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चाँद में महबूब की सूरत नज़र आती नहीं
जब से आधे चाँद में आया है कासा देखना.
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तीरगी फिर कर रही है घेरने की कोशिशें,
“नूर” है तेरा इसे तू ही ख़ुदाया देखना.
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निलेश "नूर"
मौलिक/ अप्रकाशित
Comment
शुक्रिया आ. मनन जी ....
हाँ ..शायद दोष है लेकिन क्या कर रहे हो? अभी काम कर रहा हूँ .... आदि इतना अधिक बोला जाने वाला जुमला है कि ये दोनों र साथ आने से भी अटकाव नहीं लगता ..
सादर
शुक्रिया आ. मनन जी ....
आप की शंका को समझ नहीं पाया मैं..स्पष्ट करने की कृपा करें
सादर
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