For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हो गया वह बे मुरव्वत देखते ही देखते

ग़ज़ल
फ़ाइलातुन-फ़ाइलातुन-फ़ाइलातुन-फाइलुन

मिल गई उल्फ़त की जन्नत देखते ही देखते।
हो गई उन से मुहब्बत देखते ही देखते।

आ गया है कौन आख़िर हुस्न के बाज़ार में
हो गई बरपा कियामत देखते ही देखते ।

हो गया शायद वफाओं का सितमगर पर असर
ख़त्म करदी उसने नफ़रत देखते ही देखते।

कारवां वालों को हासिल ही न था जिसको यक़ी
उसने पा ली है क़यादत देखते ही देखते।

ये है खारों की हिमायत का नतीजा बागबां
हो गई हर सू बग़ावत देखते ही देखते।

ज़ुल्म का प्याला लबालब हो चुका था दोस्तों
यूँ नहीं बदली हुकूमत देखते ही देखते ।

ग़म यही है सौंप दी तस्दीक़ जिसको ज़िन्दगी
हो गया वह बे मुरव्वत देखते ही देखते।

(मौलिक व अप्रकाशित )

Views: 743

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on May 6, 2017 at 5:54am
मुहतरम जनाब आशुतोष साहिब,गया,ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफजाई का बहुत बहुत शुक्रिया
Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 5, 2017 at 10:21pm
आदरणीय तस्दीक़ जी उम्दा ग़ज़ल हुयी है हार्दिक बधाई स्वीकार करें सादर
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on May 5, 2017 at 6:08am
जनाब ब्रजेश कुमार साहिब,ग़ज़ल में शिरकत और हौसला अफजाई का बहुत बहुत शुक्रिया
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on May 4, 2017 at 6:43pm
वाह वाह आदरणीय बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल हुई..सादर
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on May 3, 2017 at 2:28pm
मुहतरम जनाब रवि साहिब,ग़ज़ल में आपकी शिरकत औऱ हौसला अफजाई का बहुत बहुत शुक्रिया
Comment by Ravi Shukla on May 3, 2017 at 11:11am

आदरणीय तस्दीक़ साहब लाजवाब ग़ज़ल हुई है शेर दर शेर दाद और मुबारक बाद कुबूल करें

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on May 2, 2017 at 6:40pm
मुहतरम जनाब समर कबीर साहिब आदाब, ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफजाई का बहुत बहुत शुक्रिया ,महरबानी ---
मिसरा जो आप ने लिखा हैवहीँ है,टाइप में का की जगह को टाइप हो गया है ,ध्यान दिलाने का शुक्रिया
Comment by Samar kabeer on May 2, 2017 at 6:30pm
जनाब तस्दीक़ अहमद साहिब आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।

'कारवाँ वालों को हासिल ही न था जिसको यकीं'
ये मिसरा शिल्प के हिसाब से कमज़ोर है, इसे यूँ कर सकते हैं:-
'कारवाँ वालों का हासिल ही न था जिसको यकीं'
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on May 2, 2017 at 6:21pm
मुहतरम जनाब हेमंत कुमार साहिब,ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया
Comment by Hemant kumar on May 2, 2017 at 4:16pm
वाह् वाह् आदरणीय तस्दीक़ सर क्या लाजवाब ग़ज़ल हुई है....
बधाईयाँ...

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। सुंदर गीत रचा है। हार्दिक बधाई।"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आ. भाई सुरेश जी, अभिवादन। सुंदर गीत हुआ है। हार्दिक बधाई।"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।भाई अशोक जी की बात से सहमत हूँ। सादर "
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"दोहो *** मित्र ढूँढता कौन  है, मौसम  के अनुरूप हर मौसम में चाहिए, इस जीवन को धूप।। *…"
5 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"  आदरणीय सुशील सरना साहब सादर, सुंदर दोहे हैं किन्तु प्रदत्त विषय अनुकूल नहीं है. सादर "
13 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सादर, सुन्दर गीत रचा है आपने. प्रदत्त विषय पर. हार्दिक बधाई स्वीकारें.…"
13 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"  आदरणीय सुरेश कुमार 'कल्याण' जी सादर, मौसम के सुखद बदलाव के असर को भिन्न-भिन्न कोण…"
13 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . धर्म
"आदरणीय सौरभ जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय "
16 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"दोहा सप्तक. . . . . मित्र जग में सच्चे मित्र की, नहीं रही पहचान ।कदम -कदम विश्वास का ,होता है…"
20 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे अपनी रचना पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर,…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"गीत••••• आया मौसम दोस्ती का ! वसंत ने आह्वान किया तो प्रकृति ने श्रृंगार…"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आया मौसम दोस्ती का होती है ज्यों दिवाली पर  श्री राम जी के आने की खुशी में  घरों की…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service