(1)
(भ्रूण हत्या)
जैसे बेटा पैदा होना, इक वरदान कहा,
घर में न बेटी होना, एक बड़ा श्राप है !
होती न जो बेटियां तो, होते कैसे बेटे भला
इन्ही की वजह से तो, शिवा है - प्रताप है !
पैदा ही न होने देना, कोख में ही मार देना,
हर मज़हब में ये, घोर महापाप है !
महामृत्युंजय सम, वंश के लिए जो बेटा,
उसी तरह कन्या भी, गायत्री का जाप है !
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(2)
(टीस)
राष्ट्र अपने के लिए, नशा कोढ़ के समान ,
जिसने उजाड़ दिए, लाखों नौजवान हैं !
नशे के गुलाम हुए, भूले इस बात को वो,
उनकी जवानी से ही, भारती की शान हैं !
भूल निज वंश करें, दानवों सी हरकतें
उन्हें बतलाए वे तो, ऋषि की संतान है !
देना होगा हौसला भी, इन्हें समझाना होगा,
हिम्मत करो तो सभी, मंजिलें आसान है
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Comment
धर्मेन्द्र भाई, ज़र्रा-नवाज़ी का बहुत बहुत शुक्रिया !
आदरणीय प्रधान संपादक जी, आज के उस दौर में जब युवा साहित्यकार खुली कविता की तरफ आकर्षित है, वहा पर यह छंद युवा साहित्यकारों में जोश का संचार करेगी |
ये दोनों रचनाओं का भाव पक्ष बहुत ही मजबूत है, समाज की दो महत्वपूर्ण बुराई "भ्रूण हत्या और नशा" पर सन्देश देती ये रचनाएँ बहुत ही ससक्त बन पड़ी है |
शिल्प की दृष्टि से नए लोगो को एक विधा सिखने का मौका भी है,
इस शानदार अभिव्यक्ति पर बहुत बहुत बधाई स्वीकार कीजिये आदरणीय प्रधान संपादक जी, ये काव्य कृतिया निश्चित ही ओ बी ओ की गरिमा को कुछ और उचाई प्रदान करेंगी |
आपकी दोनों कवितायें "भ्रूण हत्या" और "टीस" दोनों ही काफी उम्दा हैं. जहाँ आपकी कवितायों में भावनाएं शब्दों के माध्यम से पिरोई हुयी हैं वहीँ एक शिक्षण भी समाज को साफ़ साफ़ दिया जाता हुआ दिख रहा है. कविता आपकी भावपूर्ण है और शिक्षा से परिपूर्ण है. अति उत्तम और सराहनीय रचना.
behtareen
महामृत्युंजय सम, वंश के लिए जो बेटा,
उसी तरह कन्या भी, गायत्री का जाप है !
bahut sunder!आवश्यक सूचना:-
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