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(माँ-बाप)

घर बूढ़े माता पिता, भूख से बेहाल दोनों,
बेटा पत्नी को लेकर, पार्टी उडाय रहा !

पीठ संग लग चुका, पेट बूढ़े बुढिया का
साथ गया टौमी कुत्ता, मुर्गी चबाय रहा !

आधी रात बीत गई, आए नहीं बेटा बहू
बुरा बुरा सोच कर, जी घबराय रहा !

हाथ उसका पकड़, बापू समझाए माँ को
धीरज धरो तनिक, बेटवा आय रहा !
------------------------------------------------
(विकास)

जंगलों का खून हुआ, घोसले उजड़ गए,
पंछियों के भाग्य आया, केवल प्रवास है !

बस्तियां बसा के नईं, भूल गया आदमी ये,
इनके तले दफ़न, गैर का निवास है !

रूठ गईं बारिशें भी, मरे जलकुंड सब,
खेत हुए रेत रेत, कुओं में भी प्यास है !

इसको उन्नति कहें, या कि अवनति कहें
आदमी विनाश को ही, मानता विकास है !
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Comment

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Comment by Shashi Mehra on July 12, 2011 at 10:17am
जैसे बेटा पैदा होना, इक वरदान कहा,
घर में न बेटी होना, एक बड़ा श्राप है !

होती न जो बेटियां तो, होते कैसे बेटे भला
इन्ही की वजह से तो, शिवा है - प्रताप है !

पैदा ही न होने देना, कोख में ही मार देना,
हर मज़हब में ये, घोर महापाप है !

महामृत्युंजय सम, वंश के लिए जो बेटा,
उसी तरह कन्या भी, गायत्री का जाप | आपके बारे में आपके ब्लाग पर जाकर अधिक जानकारी हुई |
आपकी साड़ी रचनाएँ सुंदर,सजीव व् सटीक हैं, पसंद आई | दाद एवं दोस्ती काबुल कीजिये |

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on June 5, 2011 at 8:06am
आपका बहुत बहुत आभार सतीश भाई !
Comment by satish mapatpuri on June 5, 2011 at 3:52am
पीठ संग लग चुका, पेट बूढ़े बुढिया का
साथ गया टौमी कुत्ता, मुर्गी चबाय रहा !
मार्मिक अभिव्यक्ति. साधुवाद.

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on June 4, 2011 at 8:18pm
अच्छा गुरु जी ? मुझे तो पता ही नहीं था, बड़ी कृपा की जो मुझे बता दिया - सादर प्रणाम !
Comment by Rash Bihari Ravi on June 4, 2011 at 1:33pm

पीठ संग लग चुका, पेट बूढ़े बुढिया का
साथ गया टौमी कुत्ता, मुर्गी चबाय रहा !

 

sir ji ye sanch hain lekin sab bete yaise nahi hain 

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