For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल- दर्द जो नातवां से उठता है

दर्द जो नातवां से उठता है
शोर वो आस्तां से उठता है


गीत भी देख लो छुपे भीतर
दर्द दिल में जहां से उठता है


नाम की भूख ने बदल डाला
क्यूँ धुंआ अब यहाँ से उठता है


प्यार बांटो सदा जमाने में
बोल सच्चा फुगां से उठता है


उम्र बीती समझ नहीं आया
रोज झगड़ा बयां से उठता है


जिंदगी आज बन्दगी 'तन्हा'

नाम उसका ही जां से उठता है....

.
मुनीश 'तन्हा'.
मौलिक व अप्रकाशित

Views: 535

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Mohammed Arif on January 27, 2017 at 8:24pm
आदरणीय मुनीशजी, अच्छी ग़ज़ल हुई बधाई कुबूल करें । जनाब समर साहब की बात पर ग़ौर करें तो बेहतर होगा । मैं उनकी बात से पूरी तरह से सहमत हूँ ।
Comment by Samar kabeer on January 26, 2017 at 10:47am
जहाँ जहाँ ज़रूरत थी मैंने ठीक करने का प्रयास किया है,एक बार फिर देखिये मेरी टिप्पणी ।
Comment by munish tanha on January 25, 2017 at 11:21pm

आदरणीय समर साहिब जी आप अपने विषय में परांगत हैं अब ग़ज़ल आपकी क्लास में आई है अब इसका रूप आपको निखारना है आपकी कसौटियां इम्तेहान होती हैं शब्दों के सही संयोजक (चुनाव ) से ग़ज़ल का रूप निखर कर आता है निवेदन है की इसका ऑपरेशन करें और ग़ज़ल को नवयोवना बना कर पेश करें आपसे यही अपेक्षा है आपका अपना मुनीश तन्हा 

Comment by Samar kabeer on January 25, 2017 at 10:22pm
जनाब मुनीश तन्हा साहिब आदाब,आपकी रचनाएं ओबीओ के मंच पर बहुत कम दिखाई देती हैं,आप ओबीओ के दो आयोजनों में 'लाइव महाउत्सव'और 'तरही मुशायरा'में सक्रिय दिखाई ज़रूर देते हैं,मैं जानता हूँ कि ग़ज़ल कहने का शौक़ आपमें जुनून की हद तक है, और आप मुश्किल ज़मीनों में भी अशआर कह लेते हैं,मेरा आपसे निवेदन है कि आप अपनी सक्रियता ओबीओ के मंच पर भी दिखाया करें,और अपनी ग़ज़लें भी मंच से साझा किया करें,और दूसरे रचनाकारों को भी अपनी प्रतिक्रया दिया करें और हौसला बढ़ाने में योगदान दें ।
अब आते हैं आपकी ग़ज़ल की तरफ़,'मीर'की मुश्किल ज़मीन में आपने ग़ज़ल कहने का अच्छा प्रयास किया है,जिसके लिये आप बधाई के पात्र हैं ।
कुछ महीने पहले 'मीर'की इसी ज़मीन का मिसरा:-

"ये धुआँ सा कहाँ से उठता है"ओबीओ के तरही मुशायरे के लिये तजवीज़ किया गया था,ये बात ध्यान देने योग्य है कि इस मिसरे पर मतला कहना बहुत दुश्वार अमल है और यही चीज़ इसे मुश्किल बनाती है,आपकी ग़ज़ल का मतला:-
'दर्द जो नातवां से उठता है
शोर वो आस्ताँ से उठता है'
ये मतला नहीं दो अलग अलग मिसरे हैं,जब तक इनमें रब्त पैदा नहीं होगा ये मतला नहीं बन सकता,अब इसे कैसे बनाएंगे देखिये,आपके मिसरों में सारी बात दो शब्दों पर टिकी है,"जो"और "वो"इन्हें बदल देने से दोनों मिसरों में वो रब्त भी पैदा हो जायेगा जिसकी ज़रूरत है,और वो शब्द हैं "जब"और "इक"अब मतला देखिये:-

"दर्द जब नातवां से उठता है
शोर इक आस्ताँ से उठता है"

'गीत भी देख लो छिपे भीतर
दर्द दिल में जहाँ से उठता है'
इस शैर के ऊला मिसरे में बात साफ़ नहीं हो रही है,देखिये:-
"गीत भी देखना मिलेंगे वहाँ
दर्द दिल में जहाँ से उठता है"

'नाम की भूख ने बदल डाला
क्यों धुआँ अब यहाँ से उठता है'
इस शैर के दोनों मिसरे भी बेरब्त हैं,
ऊला मिसरा यूँ करें :-
"नाम की भूख ही बताएगी
क्यों धुआँ अब यहाँ से उठता है"

'प्यार बाँटो सदा ज़माने में
बोल सच्चा फुगां से उठता है'
इस शैर में क़ाफ़िया दोष है,यहाँ जो भी क़ाफिये इस्तेमाल होंगे वो ज़बर वाले होंगे और "फुगां"शब्द में 'पेश'है,यानी 'उ'की मात्रा,यहाँ 'ज़बाँ' किया जा सकता है ।
उम्मीद है मेरी बातों पर ध्यान देंगे ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 25, 2017 at 6:54pm

आदरणीय मुनीश जी, ख़ुदा--सुखन मीर तकी "मीर" साहब की जमीन पर बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है. इस प्रस्तुति पर बहुत बहुत बधाई. सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। सुंदर गीत रचा है। हार्दिक बधाई।"
7 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आ. भाई सुरेश जी, अभिवादन। सुंदर गीत हुआ है। हार्दिक बधाई।"
7 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।भाई अशोक जी की बात से सहमत हूँ। सादर "
7 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"दोहो *** मित्र ढूँढता कौन  है, मौसम  के अनुरूप हर मौसम में चाहिए, इस जीवन को धूप।। *…"
8 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"  आदरणीय सुशील सरना साहब सादर, सुंदर दोहे हैं किन्तु प्रदत्त विषय अनुकूल नहीं है. सादर "
16 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सादर, सुन्दर गीत रचा है आपने. प्रदत्त विषय पर. हार्दिक बधाई स्वीकारें.…"
16 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"  आदरणीय सुरेश कुमार 'कल्याण' जी सादर, मौसम के सुखद बदलाव के असर को भिन्न-भिन्न कोण…"
17 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . धर्म
"आदरणीय सौरभ जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय "
19 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"दोहा सप्तक. . . . . मित्र जग में सच्चे मित्र की, नहीं रही पहचान ।कदम -कदम विश्वास का ,होता है…"
23 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे अपनी रचना पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर,…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"गीत••••• आया मौसम दोस्ती का ! वसंत ने आह्वान किया तो प्रकृति ने श्रृंगार…"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आया मौसम दोस्ती का होती है ज्यों दिवाली पर  श्री राम जी के आने की खुशी में  घरों की…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service