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ग़ज़ल: यही बात दिल देख मेरा जलाये

१२२-१२२-१२२-१२२

यही बात दिल देख मेरा जलाये
तुझे याद भी क्या जरा हम न आए


मुहब्बत किसी से करो तो पता हो
इशारे से महबूब कैसे बुलाये


गुनाहों ने तुमको कहीं का न छोड़ा
शराफत खड़ी मुंह में ये बुदबुदाये


खुदा प्यार बांटे सभी को हमेशा
यही सोच मुझको सदा गुदगुदाये


बफा साथ लेकर परीक्षा है आती
दुआ है खुदा से मुझे आजमाये


नदी गुनगुनाती हुई बह रही है
मिलन साथ सागर तभी खिलखिलाए

.

 मुनीश 'तन्हा'
मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by गिरिराज भंडारी on July 26, 2016 at 5:15pm

आदरणीय मुनीश भाई , खूबसूरत ग़ज़ल कही है , दिल से बधाइयाँ आपको ।  बफा को वफा कर लेना चाहिये ।

Comment by Mahendra Kumar on July 26, 2016 at 6:57am
बहुत ही ख़ूबसूरत ग़ज़ल लिखी है आपने आदरणीय मुनीश 'तन्हा' जी। प्रत्येक शेर ख़ूबसूरत है। दिल से बधाइयाँ प्रेषित हैं।

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