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बहर २१२२ २१२२ २१२२ २१२

दोस्तों के वेश में देखो यहाँ दुश्मन मिले

चाह गुल की थी मगर बस खार के दंशन मिले |

यारों का अब क्या भरोसा, यारी के काबिल नहीं

जग में केवल रब ही है, जिन से ही सबके मन मिले|

गुन गुनाते थे कभी फूलों में भौरों की तरह

सुख कर गुल झड़ गए तो भाग्य में क्रंदन मिले  |

कोशिशें हों ऐसी हर इंसान का होवे भला

उद्यमी नेकी को शासक से भी अभिनन्दन मिले |

देश भक्तों ने है त्यागे प्राण औरों के लिए

उन शहीदों को भी सारे देश का वन्दन मिले |

मौलिक एवं अप्रकाशित 

 

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Comment

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Comment by Ashok Kumar Raktale on September 13, 2016 at 2:17pm

वाह ! आदरणीय कालीपद प्रसाद मंडल जी सादर, बहुत अच्छी गजल हुई है. बहुत-बहुत बधाई स्वीकारें. सुख  या सूख  देख लें. सादर.

Comment by Kalipad Prasad Mandal on September 13, 2016 at 8:32am

आदरणीय गिरिराज जी, नमस्कार, देरी के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ |

मैं बहर का पालन तो कर लेता हूँ परन्तु पढने में मुझे भी अटकाव महसूस होता है ; इसे दूर करने किये दूर करने के लिए कोई उपाय सुझाइए | फिलहाल अभी जो सुझाव आपने दिया है, तदनुसार मैंने सुधार कर लिया | आगे भी कृपा बनाए रखिये |

सादर 

Comment by Kalipad Prasad Mandal on September 13, 2016 at 8:23am

आदरणीय समर कबीर साहिब, आदाब ,देरी के लिए क्षमा चाहता हूँ |आज कल मेरा इन्टरनेट मन मौजी कर रहा है | कभी आता है कभी जाता है | इसीलिए नियमित हाज़िर नहीं हो पा रहा हूँ | ग़ज़ल की तारीफ़ के लिए हार्दिक धन्यवाद | मैंने सुधार कर लिया है | आगे भी कृपा बनाए रखिये |

सादर 

Comment by Samar kabeer on September 11, 2016 at 3:48pm
जनाब कालीपद प्रसाद मंडल जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।
दूसरे शैर में चूँकि 'भरोसा'पुल्लिंग है इसलिये'यारों की' की जगह "यारों का"लिखें ।
चौथे शैर में 'कोशिशें' चूँकि स्त्रीलिंग है इसलिये 'कोशिशें हों ऐसा'की जगह "कोशीशें हों ऐसी"लिखें ।
चौथे शैर का सानी मिसरा बह्र के हिसाब से चेक करलें ।
आख़री शैर के ऊला मिसरे में'त्यागे'की जगह "त्यागो"लिखें । बाक़ी शुभ शुभ

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 11, 2016 at 3:47pm

आदरनीय काली पद भाई , गज़ल का बहुत अच्छा प्रयास कुछ है , और प्रयास की दिशा भी सही है , हार्दिक बधाइयाँ ।

दोस्तों के वेश में देखो यहाँ दुश्मन मिले

मिलना था गुल मुझको काँटों का मुझे दंशन मिले | बहर सही है ... पर शब्द संयोजन सही न होने के कारण अटकाव है

चाह गुल की थी मगर बस खार के दंशन मिले

यारों की अब क्या भरोसा, यारी के काबिल नहीं      --- यारों का भरोसा

जग में केवल रब ही है, जिन से ही सबके मन मिले|

गुन गुनाते थे कभी फूलों में भौरों की तरह

फूल सुख कर झड़ गए तो भाग्य में क्रंदन मिले  |  सुख नही सूख  ..... सूख कर  गुल झड़ गये तो .....      

कोशिशें हों ऐसा हर इंसान का होवे भला  ----   कोशिशें हों ऐसी

उद्यमी नेकी को शासक से भी अभिनन्दन मिले |    बहुत अच्छा

देश भक्तों खुद ही त्यागे प्राण औरों के लिए   --  देख भक्तों ने है त्यागे प्राण औरों के लिये

उन शहीदों को भी सारे देश का वन्दन मिले |

कहन मे सम्भावनायें बहुत होतीं हैं , चाहे तो आप स्वयम  कुछ और सुधार कर सकते हैं

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