For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

पश्चाताप - लघुकथा

" पश्चाताप "
"तुम ! तुम्हे.... तुम्हे यहाँ का पता किसने दिया ?" आज महीनो बाद अपनी दहलीज पर कासिम को देखते ही एक बार फिर से अपना किया हुआ गुनाह उसकी आँखों के सामने आ गया।
चोरी किये पैसे को अकेले ही संभालने के चक्कर में वो दोस्त पर जानलेवा हमला कर घटनास्थल से भाग निकला था लेकिन तब से उसे अपने किये पर दुःख के साथ साथ उसकी वापिसी का एक अनजाना डर भी सताता रहता था।
"दोस्त जिसे ढूंढना चाहो उसे ढूंढ ही लिया जाता है।" कासिम के चेहरे पर एक गहरी मुस्कान आ गयी।
"कासिम देखो..., देखो मेरी बात सुनो, मैं तुम्हे मारना नही चाहता था लेकिन पता नहीं मुझे क्या हो गया था " अपनी की हुयी गल्ती ने उसकी आवाज को घबराहट में बदल दिया।
"डर गए दोस्त ! अरे, जिस पैसे के लिये तुमने अपना ईमान खोया, वो तो यहाँ नजर आ नहीं रहा।" कासिम ने फटेहाल घर पर अपनी गहरी नजरें टिका दी।
"पाप का पैसा कभी सुख नहीं देता कासिम, चोरी के पैसे के लिए तुम्हे धोखा देकर मैंने तुम्हे मारना चाहा। सचमुच बहुत बुरा हूँ मैं।" कहते कहते उसकी आँखें झुक गयी।
"हां ! तूने मुझे मारने की कोशिश की थी लेकिन...." कासिम ने आगे बढ़कर उसके हाथ थाम लिए। "लेकिन... दोस्त, मुझे बचाने के लिये एक बार खून भी तो तूने ही दिया था।"
"फिर भी मैंने बहुत ग़लत किया दोस्त।" वो अभी भी सर झुकाये खड़ा था।
"नहीं दोस्त! तूने तो वहीं किया था जो कभी मैंने तुझे सिखाया था...।" अनायास ही कासिम की आँखें नम हो गयी".....आखिर हथियार भी तो मैंने ही तुझे थमाया था।" अपनी बात पूरी करने के साथ ही कासिम ने उसे गले से लगा लिया था।

(मौलिक व् अप्रकाशित)

विरेंदर 'वीर' मेहता

Views: 1050

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by VIRENDER VEER MEHTA on August 11, 2016 at 10:40pm
सादर आभार आदरणीया कल्पना भट्ट जी। शुक्रिया।
Comment by VIRENDER VEER MEHTA on August 11, 2016 at 10:38pm
भाई श्याम नारायण वर्मा जी उत्साह जनक टिप्पणी केलिए आप का दिल से शुक्रिया। सादर नमस्कार।
Comment by VIRENDER VEER MEHTA on August 11, 2016 at 10:37pm
आदरणीया अन्नपूर्णा बाजपाई जी कथा पर उत्साह बढाती प्रतिक्रिया के लियेसादर आभार स्वीकार करे। सादर
Comment by VIRENDER VEER MEHTA on August 11, 2016 at 10:34pm
आदरणीय शेख शहजाद भाई रचना पर तुम्हारी मौजूदगी और हौसला अफजाई के लिए मैं तहे दिल से आभारी हूँ, शुक्रिया भाई जी।
Comment by विनय कुमार on August 11, 2016 at 8:18pm

वाह, बेहद भावपूर्ण और प्रभावी रचना, प्रायश्चित से बड़ा कोई और तरीका नहीं होता गुनाहों को धोने का| बधाई आपको 

Comment by Samar kabeer on August 11, 2016 at 8:03pm
जनाब वीरेंद्र वीर मेहता जी आदाब,बहुत अच्छी लगी आपकी लघुकथा,बधाई स्वीकार करें ।
Comment by ASHISH KUMAAR TRIVEDI on August 11, 2016 at 7:47pm
सुंदर कथा
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 11, 2016 at 3:26pm
आत्मग्लानि को बाखूबी प्रदर्शित करती हुई आपकी यह कथा हुई है सर। हार्दिक बधाई ।
Comment by Shyam Narain Verma on August 11, 2016 at 12:04pm
सुन्दर लघुकथा के लिये आपको बधाई ॥
Comment by annapurna bajpai on August 11, 2016 at 11:33am

वाह !! बहुत खूब , शीर्षक को परिभाषित करती  अच्छी लघु कथा । 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
7 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
yesterday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
yesterday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
yesterday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​आपकी टिप्पणी एवं प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, प्रोत्साहन के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आ. भाई तमाम जी, हार्दिक आभार।"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service