२१२२ २१२२ २१२२ २१२2
जाने किस ऊंचाई पर सब लोग जाना चाहते है
हो जमी पे ही खड़े सब क्या दिखाना चाहते हैं
जो समंदर पार के ले आदमी वो ही बड़ा अब
आप ऐसी सोच रखकर क्या जताना चाहते है
आदि से कंगूरों की सूरत टिकी जिस नीव पर थी
आप क्यूँ उस नीव को ही अब भुलाना चाहते हैं
बंगले नौकर गाडी मोटर की तमन्ना तो नयी अब
पर अभी भी प्यार दिल में हम पुराना चाहते हैं
पढ़ लिया इतिहास सबने जानते अंजाम भी सब
फिर भी क्यूँ सब खून की नदियाँ बहाना चाहते हैं
मांगते कुछ इससे पहले उसने दी दौलत ही ढेरों
कैसे समझायें उसे दिल में ठिकाना चाहते हैं
मैं दिया हूँ काम मेरा करना है रोशन जहाँ ये
क्यूँ मेरी लौ से ही कोई घर जलाना चाहते है
कहते हैं गर आप मुझसे मांग लो जो मांगना तो
ये समझ लो आप को अपना बनाना चाहते हैं
आँखों में देखी तेरी साँसों से जो महसूस करते
बस ग़ज़ल आशू वही अब गुनगुनाना चाहते हैं (F 54)
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय महेंद्र भाई जी आपकी प्रतिक्रिया के लिए ह्रदय से आभारी हूँ दरअसल पहले मैंने दर्शाई गयी बहर में ग़ज़ल पेश की थी अन्तिम समय में मैंने ग़ज़ल में परिवर्तन कर दिया किन्तु बहर में परिवर्तन करना भूल गया मैं संसोधन के लिए एडमिन महोदय से निवेदन करूंगा आखिर के शेर में उद्धृत गलती को भी सुधार रहा हूँ सादर धन्यवाद के साथ
आदरणीय समर सर रचना पर आपकी प्रतिक्रिया के लिए ह्रदय से आभारी हूँ तमामो शब्द पोस्ट करने के बाद मैं ही संशय में गया था ..बोलचाल में कुछ शब्दों का गलत प्रयोग इस तरह की खामी बनकर आ जाता है ..यह शब्द गलत है मैं इसमें परिवर्तन करने के लिए एडमिन महोदय से निवेदन करूंगा सादर प्रणाम के साथ
आदरणीया प्रतिभा जी ..नेट की समस्या के कारण प्रतिक्रिया न कर सका था रचना पर आपकी उत्साहित करने वाली प्रतिक्रिया के लिए ह्रदय से आभारी हूँ सादर धन्यवाद के साथ
बंगले नौकर गाडी मोटर की तमन्ना तो नयी अब
पर अभी भी प्यार दिल में हम पुराना चाहते हैं
पढ़ लिया इतिहास सबने जानते अंजाम भी सब
फिर भी क्यूँ सब खून की नदियाँ बहाना चाहते हैं..... आज के सन्दर्भ में बहुत सार्थक बात हार्दिक बधाई प्रेषित है आपको आदरणीय डॉ आशुतोष मिश्रा जी
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