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ग़ज़ल - जब होता है तेरा चर्चा मेरे आगे

22 22 22 22 22 22

कहता है सूरज से चन्दा मेरे आगे
चलना मेरे आगे, चलना मेरे आगे

जो इश्क़ करो तो यूँ करना मेरे आगे
रह जाये जल के ये दुनिया मेरे आगे

तुम हो तो ले आयेंगे फिर से ये मौसम
गिर जाये, गिरने दो, लम्हा मेरे आगे

जाने क्या ढूंढने लगते हैं मुझ में सब
जब होता है तेरा चर्चा मेरे आगे

मेरे पीछे कड़वी कड़वी एक हकीकत
मीठा मीठा प्यारा सपना मेरे आगे

एक दिवाना पागल तेरे अन्दर बैठा
लैला लैला रटता रहता मेरे आगे

हरसू है कैसा, यादों का तेरी सहरा
उठता है, गिरता है, बहता मेरे आगे

जब से टूटा ये दिल लगता रहता है यूँ
प्यार मुहब्बत एक तमाशा मेरे आगे

ऐसे भी देते हैं ये लोग यहाँ धोखा
मेरी मेरे पीछे, तेरा मेरे आगे

क्या कहता है जा के उनसे मेरे पीछे
समझाता है जो भी, समझा मेरे आगे

जो दौड़ रहा था, वो तो छूट गया कब का
जो ठहरा था, वो ही निकला मेरे आगे

संवारूँगा इक दिन मैं अच्छे से इसको
बनती है बन ले ये दुनिया मेरे आगे

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by Mahendra Kumar on June 30, 2016 at 11:03pm
आदरणीय बृजेश जी संवारूँगा का भार 2222 होगा। ग़ज़ल को पसंद करने के लिए आपका हार्दिक आभार.. सादर!
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on June 30, 2016 at 8:27pm

बहुत ही शानदार ग़ज़ल हुई आदरणीय....एक शंका है मेरी...संवारूँगा का मात्रा भार
क्या होगा...

Comment by Mahendra Kumar on June 28, 2016 at 12:37pm
हार्दिक आभार आदरणीय गिरिराज सर! यदि आप यह भी इंगित कर सकें की लय में कहाँ पे कमी आ रही है तो मुझे दूर करने में सुविधा होगी। सादर!
Comment by Mahendra Kumar on June 28, 2016 at 12:35pm
बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय राजेश कुमारी जी... सादर!

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 28, 2016 at 10:41am

आदरणीय महेन्द्र भाई , अच्छी गज़ल हुई है , हार्दिक बधाइयाँ आपको । लय मे कुछ कमी है , वैसे मुझसे भी ये गलती हो जाती है , आप भी देख लें ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 28, 2016 at 10:21am

जाने क्या ढूंढने लगते हैं मुझ में सब
जब होता है तेरा चर्चा मेरे आगे----वाह्ह्ह 

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