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हवा का बहता झोका

तन मन को है छूता

मानवता को दर्शाता

मित्र शत्रु को हर्षाता

कोई भेद नहीं करता

बारिस में वर्षा लाता

भूमि की प्यास बुझाता

दुनिया में प्यार बांटता

प्यार में धोखा खाता

हवा बवंडर बन जाता

अपनी दिशा भटकता

समाज में तबाही लाता 

जड़ से दरख्त उखाड़ता

जग से अस्तित्व मिटाता

उसे अंबर तक ले जाता

निर्दोषों को देता सजा

वृक्षो की डाली तोड़ता

छीनता पक्षी का घोसला

नीरीह पक्षी बेघर होता

दोषी का कुछ न बिगड़ता  

महलों में सुख से रहता

राह में पर्वत से टकराता

थक कर मैदान में आता

जग को लीला दिखलाता  ॥

मौलिक एवं अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by Ram Ashery on April 4, 2016 at 9:37pm

आपको को बहुत बहुत सहृदय धन्यवाद इस महत्वपूर्ण सुझाव के लिए 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 4, 2016 at 8:50pm

अच्छे भाव हैं कविता के प्रयास कीजिये और बेहतर कर सकते हैं |इस प्रस्तुति पर बधाई आपको |

Comment by Dr Ashutosh Mishra on April 3, 2016 at 7:00pm
भाव सूंदर है तकनीकी पक्ष मेंखमी हैं ग़ज़ल की जानकारी इस मंच पर मिलेगी

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