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नवगीत........सेंभल के फूल

खिले जो फूल सेंभल के

रहे वह मात्र दस दिन के

वो दुनियां देख न पाये

अहं के झूठ के साये

लड़े हर वक्त मौसम से

हुये बस धूल कण-कण के.............खिले जो फूल सेंभल के 

रुई की नर्म फाहें उड़

गगन को भेदना चाहें

हवा रुख को बदल देती

उगाती रक्त की बांहें.

पकड़ कर ठूंसते-पीटें

लिहाफों में भरें धुन के...............खिले जो फूल सेंभल के 

हवाओं से भरे फूले

निशक्तों की तरह झूलें

लिये फल फूल रस कलियां

मिली नहिं देव की गलियां

समय ने नित्य झकझोरा

बिजूखों सा गिरे तन के................खिले जो फूल सेंभल के 

कहें जन्नत मिले दो जख

चुभें नित कण्ट शूली नख

वियावानों घने वन में

भटकते टीसते सदमें

सुखी जीवन क्षरे हरपल

सुनाते दर्द चुन-चुन के..................खिले जो फूल सेंभल के 

मौलिक व अप्रकाशित

 

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Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 13, 2016 at 9:57pm

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आ० रामबली भाई जी, सादर प्रणाम!   उत्साहवर्धन हेतु आपका हार्दिक आभार. सादर

Comment by रामबली गुप्ता on March 10, 2016 at 11:25pm
आ.केवल जी सुंदर गीत के लिए हृदयतल से बधाई स्वीकार करें। सादर
Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 9, 2016 at 8:42pm

आ० रामशिरोमणि भाई जी, सादर प्रणाम!   उत्साहवर्धन हेतु आपका हार्दिक आभार. सादर

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 9, 2016 at 8:41pm

आ० समर भाई साहब, सादर प्रणाम! उत्साहवर्धन हेतु आपका हार्दिक आभार. सादर

Comment by ram shiromani pathak on March 9, 2016 at 5:53pm
सुन्दर प्रस्तुति भाई।।बधाई
Comment by Samar kabeer on March 9, 2016 at 10:30am
जनाब केवल प्रसाद जी आदाब,बहुत अच्छा लगा आपका नवगीत,बधाई स्वीकार करें ।

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