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१२२२/१२२२/१२२२/१२२२
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कभी बदनाम गलियों में भटकती हैं तमन्नाएँ,
कभी खुद की निगाहों में खटकती हैं तमन्नाएँ.
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हवस की मकड़ियाँ बुनती है दिल में जाल हसरत के,
जहाँ मौका मिला, आकर, अटकती है तमन्नाएँ.
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तमन्नाओं का अंधड़ रोक पाना है बहुत मुश्किल,
मगर दिल में बसा हो रब, ठिठकती हैं तमन्नाएँ.
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कोई इंसान जब अपनी ख़ुदी को जीत लेता है,
तो फिर क़दमों में उस के, सर पटकती हैं तमन्नाएँ.
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सफ़र जब जिस्म से बाहर का करने रूह चलती है,
चिता की लकड़ियाँ बन कर चटकती हैं तमन्नाएँ.
.
निलेश "नूर"
मौलिक/ अप्रकाशित

Views: 579

Comment

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Comment by Nilesh Shevgaonkar on February 2, 2016 at 7:57am

शुक्रिया आ. दुबे जी 

Comment by Hari Prakash Dubey on February 2, 2016 at 2:12am

सफ़र जब जिस्म से बाहर का करने रूह चलती है,
चिता की लकड़ियाँ बन कर चटकती हैं तमन्नाएँ.....गज़ब ,बहुत सुन्दर ग़ज़ल ,बहुत -बहुत बधाई आ. नीलेश जी ! सादर 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on January 31, 2016 at 8:42am

शुक्रिया आ. मुकेश जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on January 31, 2016 at 8:42am

शुक्रिया आ. सतविंदर जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on January 31, 2016 at 8:42am

शुक्रिया आ. समर साहब 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on January 31, 2016 at 8:41am

शुक्रिया आ. तेज वीर सिंह जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on January 31, 2016 at 8:41am

शुक्रिया डॉ प्राची जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on January 31, 2016 at 8:41am

शुक्रिया रवि जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on January 31, 2016 at 8:41am

शुक्रिया दिनेश भाई 

Comment by MUKESH SRIVASTAVA on January 29, 2016 at 5:57pm

हवस की मकड़ियाँ बुनती है दिल में जाल हसरत के,
जहाँ मौका मिला, आकर, अटकती है तमन्नाएँ. bahut hee khoobsoorat GAZAL - dheron badhaee - her She'r lazawaab bhaee jee

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