For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

फिर जमाने से बशर दर्द छुपाता क्यूँ है (फिलब्दीह ग़ज़ल 'राज')

बेवजह बात जिरह करके बढाता क्यूँ है                                                                                                                             एक मासूम पे इल्जाम लगाता क्यूँ है

 

खोल देती हैं सभी राज पनीली आँखें                                                                                                                               फिर जमाने से बशर दर्द छुपाता क्यूँ है

 

हो गया आज क्यूँ इंसा की तरह आईना ,

सच छुपाकर ये सदा झूठ दिखाता क्यूँ हैं

 

 

भर रहा था जो अभी वक़्त से धीरे धीरे

,तू उसी जख्म पे तेज़ाब लगाता क्यूँ है

 

 

छेड़ कुदरत से करेंगे तो बुरा होगा हश्र,

ऐसे आफ़ात बशर पास बुलाता क्यूँ है .

 

 

कल चुभेंगे वही पैरों में तेरे अपनों के,                                                                                        

राह में ख़ार किसी के तू बिछाता क्यूँ है

 

 

छीन लेती है कज़ा रूह को जब भी चाहे,

फिर खुदा जिस्म से उसको यूँ मिलाता क्यूँ है.

--------------मौलिक एवं अप्रकाशित 

 

 

 

Views: 478

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 1, 2016 at 8:25pm

आ० लक्ष्मण धामी भैय्या आपको ग़ज़ल पसंद आई बहुत- बहुत आभार आपका. 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 1, 2016 at 8:24pm

आ० तेजवीर सिंह जी ,आपकी सराहना पाकर मेरा लेखन कर्म सार्थक हो गया |दिल से बहुत आभारी हूँ सादर .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 1, 2016 at 8:23pm

आ० समर भाई जी ,पोस्ट पर बहुत दिनों बाद आना हुआ एक महीने से बहुत ही ज्यादा व्यस्त थी |प्रत्युत्तर में विलम्ब के लिए क्षमा चाहती हूँ |आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ |आपकी बात का अगली बार पूर्ण ध्यान रखूंगी ग़ज़ल के अरकान जरूर लिखा करूंगी |आपका दिल से बहुत- बहुत आभार. 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 27, 2016 at 11:46pm

आदरणीया राजेश दीदी, ग़ज़ल की बह्र या वज़्न ....?. सादर 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 26, 2016 at 11:01am

आ० राजेश दी इस लाजवाब ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई l

Comment by TEJ VEER SINGH on January 25, 2016 at 6:14pm

हार्दिक बधाई आदरणीया राजेश कुमारी जी!!बेहतरीन गज़ल!एक एक शेर बहुत लाज़वाब है!पुनः बधाई!

     खोल देती हैं सभी राज पनीली आँखें                                                                                                                               फिर जमाने से बशर दर्द छुपाता क्यूँ है

Comment by Samar kabeer on January 25, 2016 at 5:36pm
बहना राजेश कुमारी जी आदाब,फ़िलबदीह ग़ज़ल में आपको कमाल हासिल है,ये पहले भी कह चुका हूँ,ये ग़ज़ल भी शानदार रही,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं !
देख रहा हूँ कि आजकल मंच पर ग़ज़ल के अरकान कुछ सदस्य ही लिखते हैं,जूनियर तो जूनियर हैं,सीनियर्स को इसका ख़ास ख़याल रखना चाहिये,सही है न ?

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

सुरेश कुमार 'कल्याण' posted blog posts
8 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
9 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। बोलचाल में दोनों चलते हैं: खिलवाना, खिलाना/खेलाना।…"
22 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आपका आभार उस्मानी जी। तू सब  के बदले  तुम सब  होना चाहिए।शेष ठीक है। पंच की उक्ति…"
22 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"रचना भावपूर्ण है,पर पात्राधिक्य से कथ्य बोझिल हुआ लगता है।कसावट और बारीक बनावट वांछित है। भाषा…"
22 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदरणीय शेख उस्मानी साहिब जी प्रयास पर  आपकी  अमूल्य प्रतिक्रिया ने उसे समृद्ध किया ।…"
23 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदाब। इस बहुत ही दिलचस्प और गंभीर भी रचना पर हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब।  ऐसे…"
23 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"जेठांश "क्या?" "नहीं समझा?" "नहीं तो।" "तो सुन।तू छोटा है,मैं…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक स्वागत आदरणीय सुशील सरना साहिब। बढ़िया विषय और कथानक बढ़िया कथ्य लिए। हार्दिक बधाई। अंतिम…"
yesterday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"माँ ...... "पापा"। "हाँ बेटे, राहुल "। "पापा, कोर्ट का टाईम हो रहा है ।…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"वादी और वादियॉं (लघुकथा) : आज फ़िर देशवासी अपने बापू जी को भिन्न-भिन्न आयोजनों में याद कर रहे थे।…"
Thursday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"स्वागतम "
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service