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दास्तां अपने धरा की

अजीब दास्तां दोस्तों अपने धरा की,
प्रति पल चलती पर दिखती है स्थिर।
बदलते मौसम बताते गति धरा की
पर बिगड़ने बनने से हम हैं बेखबर ।
ये ऊंचे ऊंचे पर्वत मस्तक धरा की
इनकी उपयोगिता से हम हैं बेखबर ।
मानव जीवन है श्रेष्ठ धरोहर धरा की
उत्थान की पराकाष्ठा से हम बेखबर ।
आज बिगाड़ रहा संतुलन धरा की
हर दिन हो रहे विनाश से बेखबर ।
ये बहती हुई नदियां शोभा धरा की
इनमें बढ़ते प्रदूषण से हम बेखबर ।
प्राण दायिनी वायु है शान धरा की
इसमें घुल रहे जहर से हम बेखबर ।
सारे पशु पक्षी हैं अभिमान धरा की
खौफ में जी रहे हैं पर हम बेखबर ।
बादल पानी से जुड़ी कहानी धरा की
बादलों के अस्तित्व से हम बेखबर ।
प्रगति के नाम पर विनाश धरा की
आते भविष्य के खतरे से हम बेखबर ॥
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Ram Ashery on January 19, 2016 at 11:54am

आपको मेरी ओर से बहुत बहुत आभार । 

Comment by PHOOL SINGH on January 19, 2016 at 9:58am

क्या बात है बहुत खूब...........बधाई स्वीकार करे

Comment by Ram Ashery on January 18, 2016 at 5:44am

मेरे विचारों को लोगों तक पहुँचने के लिए आपको बहुत बहुत आभार । 

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