कैसे अपने मधु पलों को शूल शैय्या पे छोड़ आऊँ
स्मृति घटों पर विरहपाश के कैसे बंधन तोड़ आऊं
विगत पलों के अवगुंठन में
इक दीप अधूरा जलता रहा
अधरों पर लज्जा शेष रही
नैनों में स्वप्न मचलता रहा
एकांत पलों में तृप्ति भाव को किस आँगन मैं छोड़ आऊँ
प्रिय स्मृति घटों पर विरहपाश के कैसे बंधन तोड़ आऊँ
अधरों से मिलना अधरों का
तिमिर का मौन शृंगार हुआ
तृषित देह का देह मिलन से
अंगार पलों का संचार हुआ
किस पल को मैं बना के जुगनू तिमिर देश में छोड़ आऊँ
प्रिय स्मृति घटों पर विरहपाश के कैसे बंधन तोड़ आऊँ
वज्र क्षणों की मृदु रज कण से
अलंकृत सुधियों की श्वास हुई
अभिषेक पीर का हुआ नीर से
कम्पित उर की हर आस हुई
लोचन के मैं अश्रु कलश को किस मेघ देश में छोड़ आऊँ
प्रिय स्मृति घटों पर विरहपाश के कैसे बंधन तोड़ आऊँ
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी रचना की प्रस्तुति पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का दिल से आभार।
आदरणीय उस्मानी साहिब रचना की प्रस्तुति पर आपकी स्नेहमयी प्रशंसा एवं अमूल्य सुझाव का दिल से आभार।
आदरणीय मनोज कुमार जी प्रस्तुति पर आपकी स्नेहिल उपस्थिति का हार्दिक आभार।
आदरणीय सुशील सरना भाई , बहुत सुन्दर भाव पूर्न गीत की रचना हुई है , हार्दिक बधाइयाँ आपको ।
आदरणीय मात्रा विन्यास पंक्तियों मे एक से नही लग रहे हैं , जिसके कारण गेयता मे कुछ कमी महसूस हुई है , देखियेगा ॥
आदरणीय सुशील सरना सर, शतकीय प्रस्तुति पर आपको बहुत बहुत बधाई
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