कैसे अपने मधु पलों को शूल शैय्या पे छोड़ आऊँ
स्मृति घटों पर विरहपाश के कैसे बंधन तोड़ आऊं
विगत पलों के अवगुंठन में
इक दीप अधूरा जलता रहा
अधरों पर लज्जा शेष रही
नैनों में स्वप्न मचलता रहा
एकांत पलों में तृप्ति भाव को किस आँगन मैं छोड़ आऊँ
प्रिय स्मृति घटों पर विरहपाश के कैसे बंधन तोड़ आऊँ
अधरों से मिलना अधरों का
तिमिर का मौन शृंगार हुआ
तृषित देह का देह मिलन से
अंगार पलों का संचार हुआ
किस पल को मैं बना के जुगनू तिमिर देश में छोड़ आऊँ
प्रिय स्मृति घटों पर विरहपाश के कैसे बंधन तोड़ आऊँ
वज्र क्षणों की मृदु रज कण से
अलंकृत सुधियों की श्वास हुई
अभिषेक पीर का हुआ नीर से
कम्पित उर की हर आस हुई
लोचन के मैं अश्रु कलश को किस मेघ देश में छोड़ आऊँ
प्रिय स्मृति घटों पर विरहपाश के कैसे बंधन तोड़ आऊँ
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय सुशिल सरना जी
शतकीय ब्लॉग प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई
विरह शृंगार का सुन्दर भावपूर्ण निरूपण हुआ है...जो कलात्मक है.
१६-१७ की यति पर गीत शिल्प का निर्वाह किया गया है, यद्यपि १६-१६ की पंक्तियाँ के साथ गीत में प्रवाह व गेयता अप्रतिम रहते हैं.
इस भावप्रवण प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई
आदरणीय प्रतिभा जी रचना पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का हृदयतल की गहराईयों से हार्दिक आभार। आप सब के स्नेह और मार्गदर्शन ने मुझे आज शतक छूने का सम्मान दिया है। हार्दिक हार्दिक आभार।
इस भाव पूर्ण रचना के लिए ढेरों बधाई आदरणीय सुशील सरना जी साथ ही शतक के लिए भी हार्दिक बधाई
आ० सतविंदर कुमार जी रचना की प्रस्तुति पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का दिल से आभार।
आ० rajesh kumari जी रचना की प्रस्तुति पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का दिल से आभार।
आ० सुशील सरना जी ,बहुत भावपूर्ण गीत हुआ इसके लिए तथा आपके शतक के लिए दिल से बहुत- बहुत बधाई |
आदरणीय Abid ali mansoor जी रचना की प्रस्तुति पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का दिल से आभार।
मन की अथाह गहराई में उतरती रचना, हार्दिक वधाई आदरणीय सुशील जी!
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी रचना ने आपको प्रभावित किया ,मेरे लिए गर्व की बात है। आपकी हृदयग्राही प्रशंसा एवं गेयता बाबत सुझाव का दिल से हार्दिक आभार।
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