"कितने बडे परिवार में व्याह दिया तुमने माँ , एक बार भी नहीं सोचा कि कैसे निभाऊँगी मै ? "
"नहीं बिट्टो ऐसा नहीं कहते ,भरा - पूरा घर है तुम्हारा । ऐसे परिवार क़िस्मत- वालियों को मिलते है । "
"खाक क़िस्मत -वालियाँ , तुम नहीं जानती कि मुझे , इतनीss सारी रोटियां अकेले सेंकनी पडती है ।"
"घर के लोगों की रोटियां नहीं गिनते बिट्टो , नजर लग जाती है ।" माँ हल्की चपत लगाते हुए कह उठी थी उस दिन ।
माँ का लाड़ से मुस्कुरा कर रह जाना, आज उसे बहुत याद आ रहा था ।
पति की अचानक हुए रोड एक्सीडेंट में उनका मरणासन्न अवस्था और बडे़ परिवार का एकजुटता से बच्चे समेत उसको भी संभालना , आज रसोई पकाते हुए रोटियां गिनती में बहुत कम नजर आ रही थी ।
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
जागरुक करती हुई तथा सशक्त भावदशा को अभिव्यक्त करती लघुकथा केलिए हार्दिक बधाइयाँ.
भाषा के अनुसार अवस्था शब्द स्त्रीलिंग है.
व्याह वस्तुतः ब्याह शब्द है.
है और हैं के प्रति सचेत रहना आवश्यक है.
शुभ-शुभ
बहुत ही बढ़िया लघुकथा है आ० कांता जी, संयुक्त परिवार दुःख कैसे बाँट लेता है, कई बार पता भी नहीं चलता|
अ० कांता जी अपनी अच्छे विषय को उत्तम बनाया कुछ और शिल्प में समय देती तो उत्कृष्ट बन जाती , फिर भी मेरी और से बधाई
आदरणीया कांता जी, यथार्थ की ऐसी मार्मिक प्रस्तुति. बहुत शानदार लघुकथा हुई है. पंच लाइन अपना प्रभाव गहरे तक छोडती है- // आज रसोई पकाते हुए रोटियां गिनती में बहुत कम नजर आ रही थी ।//
इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई
अपनों की पहचान मुसीबत में ही होती है ,और अगर उस समय अपने सच में अपनों की तरह खड़े हो जाएँ तो उनके लिए उठाये गए सारे कष्ट सार्थक लगते हैं , अंत बहुत ही गूढ़ भाव लिए है 'रोटियां गिनती में कम नज़र आ रही थीं 'यथार्थ से जुडी इस रचना के लिए आपको ढेरों बधाई आदरणीया कांता जी
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