दुःख से अब तक नहीं मिले हो
इसीलिए फूले फिरते हो I
ज्ञान ध्यान की बातें सारी
सुख सुविधा संग लगती प्यारीI
चेहरे पर पुस्तक चिपकाये
दूजों को ही पाठ पढ़ाये
खुद उनको तुम सीख न पाए I
खुद को पढ़ना भूल गए हो
इसीलिए फूले फिरते हो I
चीज़ों का बस संचय करना
अलमारी को हर दिन भरना I
नया जूता जो देता छाला
लगता कितना पीड़ा वाला I
नंगे पैरों के छालों से
अब तक शायद नहीं मिले हो
इसीलिए फूले फिरते हो I
प्यार दोस्ती वादे यादें
सब कुछ है ,पर इनके आगे
हरदम एक संशय रखते हो
नहीं कहा , वो भी सुनते हो I
हर चेहरे का मंथन करते
खुद दर्पण से नहीं मिले हो
इसीलिए फूले फिरते हो I
भर भर लाते खूब उजाला
चमकाते हर कोना घर का I
सड़क लाइट पर पढ़ता देखो
वो इक बालक झुग्गी वाला I
मांगेगा इक दिन हिसाब जो
अपने हिस्से के प्रकाश का I
तम से अब तक नहीं मिले हो
इसीलिए फूले फिरते हो I
दुःख से अब तक नहीं मिले हो
इसीलिए फूले फिरते हो I
मौलिक व् अप्रकाशित
Comment
आदरनीया प्रतिभा जी , सुनदर भाव लिये गीत रचना हुई है , लय कहीं कहीं बाधित है ! आपको हार्दिक बधाइयाँ ।
आदरणीय सुशील सरना जी ,आपको रचना पसंद आई , आपकी ह्रदय से आभारी हूँ
दुःख से अब तक नहीं मिले हो
इसीलिए फूले फिरते हो I .... बहुत ही सुंदर कथ्य आदरणीया प्रतिभा जी … हकीकत का बहुत ही सुंदर चित्रण हुआ है आपकी इस दिलकश प्रस्तुति में। हार्दिक बधाई आदरणीया।
आदरणीया प्रतिभाजी, रचना वाचन के अलावा जो प्रसन्नता की बात है वह ये कि यदि सही ढंग से पालन हो तो आपकी रचनाधर्मिता की भूमि नवगीत विधा के बीज को सार्थक वातावरण भी दे सकती है.
प्रस्तुति में अनगढ़पन अवश्य है लेकिन भावदशा और तेवर सारा कुछ नवगीत का है. इस हेतु हार्दिक बधाइयाँ.
मैं कुछ विन्दु स्पष्ट कर रहा हूँ उस पर मनन करना उचित होगा --
१) ध्वन्यात्मक तुकान्तता के मोह से जितना हो सके बचें.
२) पंक्तियों की कुल मात्रिकता के प्रति अत्यंत दृढ़ रहें.
३) शब्द-संयोजन की आपके पास नैसर्गिक समझ है. इसे विधाजन्य बनायें. आप इसके लिए छन्द विधान समूह में छन्दों पर के आलेख पढ़ जायें. वैसे वहीं इस विषय पर भी एक लेख है.
हार्दिक शुभकामनाएँ
आदरणीया प्रतिभा जी, बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति हुई है. रचना का प्रत्येक बंद बहुत गहन विचार का परिणाम है. इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई.
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