Added by pratibha pande on May 15, 2020 at 11:00pm — 8 Comments
मेमना और भेड़िया फिर उसी नाले के पास टकरा गये। भेड़िये को देखकर मेमना मिमियाने लगा।
Added by pratibha pande on January 7, 2020 at 7:30pm — 8 Comments
“ कब से इंतज़ार कर रहा हूँ तेरा I एक राज़ की बात बतानी है I’’ राधा के बाहर आते ही अब्दुल ड्राईवर झट उसके पास आ गया I
“जल्दी बता, बहुत काम पड़ा है I” झटके का कपड़ा कमर में खोंसती राधा बोली I
“ कल तू बता रही थी ना कि मेमसाब आजकल बदली बदली हैं, बहुत मीठा बोलती हैं , टूट फूट में चिल्लाती भी नहीं हैं I’’
“ हाँ तो ?’’
“दोनों कड़वे करेलों की दरियादिली का राज़ आज खुल गया है I’’ अब्दुल का अंदाज़ भेद भरा था I
“दोनों मतलब ?’’
“ साहब भी आजकल मीठे हो रहे हैं I…
ContinueAdded by pratibha pande on July 6, 2017 at 6:00pm — 9 Comments
ऊन सलाई संग दादी का
बहुत पुराना था याराना
चपल उँगलियों का दादी की
जाड़े ने भी लोहा माना
छत पर जब दादी को पाती
धूप गुनगुनी मिलने आती
ख़ास सहेली बन दादी की
वो भी फंदों से बतियाती
सीधे पर दो उल्टे फंदे
बुनता जाता ताना बाना
कल जो था बाबा का स्वेटर
अब छोटू का टोपा मफलर
नई पुरानी ऊनों के संग
चपल उँगलियाँ चलतीं सर सर
इस रिश्ते से उस रिश्ते तक
गर्माहट का आना…
ContinueAdded by pratibha pande on December 18, 2016 at 1:00pm — 8 Comments
हे पार्थ के सारथी, हे जसुमति के लाल
हरने जन की पीर अब , फिर आओ गोपाल
ध्वस्त किया था कंस का ,इक दिन तुमने मान
निडर हो गया कंस अब ,और हुआ बलवान
घूम रहा है ओढ़ कर ,सज्जनता की खाल
हरने जन की पीर अब , फिर आओ गोपाल
पाँचाली के चीर का ,किया खूब विस्तार
नयनों में भर नीर फिर ,तुमको रही पुकार
अंध सभा में ठोकता , दुःशासन फिर ताल
हरने जन की पीर अब ,फिर आओ गोपाल
अर्जुन का रथ थाम कर…
ContinueAdded by pratibha pande on August 25, 2016 at 8:00am — 14 Comments
चौराहे नाके पर बालक
बेच रहा है आज तिरंगा
झंडे लेकर उससे इक दो
कुछ पैसे उसको दे डालो
फिर गाडी में उन्हें लगा कर
आज़ादी की रस्म निभा लो
खाली हाथों घर जो लौटा
बाप करेगा पी कर पंगा
शनि लेकर कल घूम रहा था
सरसों तेल व जलती बाती
भूखे बच्चे चौराहे पर
कब बीतेगी साढ़े साती
रोजी उसकी ही खा जाता
खादी जाली का हर दंगा
बीते न बस रस्मी…
ContinueAdded by pratibha pande on August 15, 2016 at 11:18am — 4 Comments
दर्जी रमेश के एक कमरे के घर में आज उत्साह पसरा हुआ था I टी वी के एक कार्यक्रम में बेटे राजू का गाना आनेवाला था I
“काकी टी वी नहीं खोला i राजू भैया का गाना शुरू हो गया है “ पडौस की लड़की हाँफती अन्दर आई I
“सुबह से इंतज़ार था और इनकी मशीन की खट खट में समय का ध्यान नहीं रहा, चल लगा दे जल्दी से “I बेटे को टी वी में देखने को बेताब कांता , टी वी के एकदम पास बैठ गई I
टी वी खोलने तक गाना हो चुका था I तालियों की गडगडाहट के बीच राजू को देख उसकी आँखें भर आईं Iमाथे के…
ContinueAdded by pratibha pande on July 23, 2016 at 7:43pm — 18 Comments
मेरे घर की आग में,,सेंक रहा है हाथ
दूत बने शैतान के , देता उनका साथ
देता उनका साथ ,लगा मति पर है ताला
ड्रेगन धुन पर नाच ,करे होकर बेताला
जग पर जाहिर आज ,सभी मंसूबे तेरे
छोड़ लगाना आग ,बाज आ भाई मेरे
छोड़ें ढुलमुल रीत को ,अब उँगली लें मोड़
रोग पुराना हो रहा ,खोजें दूजा तोड़
खोजें दूजा तोड़ ,नहीं अब मीठी गोली
बातें जफ्फी खूब ,खूब समझाइश हो ली
हमको सकता बाँट ,ख़्वाब उसका ये तोड़ें
सच में हों गंभीर ,महज…
ContinueAdded by pratibha pande on July 21, 2016 at 12:30pm — 22 Comments
“अम्मा हो सकता है कि पुलिस आपसे भी पूछताछ करे I आपको बस इतना कहना है कि मै तो हफ्ते भर पहले ही आई हूँ यहाँ , कुछ ज्यादा नहीं जानती और .." बेटा बोले जा रहा था पर सुमित्रा जी का दिमाग़ सुन्न था I
बेटे के यहाँ काम करने वाली बाई सीता ने कल रात पति से झगडे के बाद फाँसी लगा ली थीI
सुमित्रा जी दस दिन पहले ही बेटे के पास मुंबई आई थीं I बेटे बहू के काम पर जाने के बाद सीता के साथ सुख दुःख की बातें चलती रहती थीं उनकीI परसों बहू ने समझाया कि बाई से काम के अलावा ज्यादा बात चीत नहीं किया…
ContinueAdded by pratibha pande on June 27, 2016 at 10:30am — 16 Comments
सुबह सुबह सिंह साहब का ड्राईवर कल्याण ,शर्मा जी के घर आया I
“सर, आप नगरपालिका में हैं ना , जानवर उठाने वाली गाड़ी के लिए फोन कर दीजिये मेहरबानी करके” I
“क्या हुआ “?
“वो सीज़र” कल्याण का गला भर आया “आज सुबह चल बसा “I
सीज़र सिंह साहब का एल्सेशियन कुत्ता था I सिंह साहब रोज़ उसे घुमाने ले जाते थे और उसी दौरान शर्मा जी की उनसे थोड़ी बहुत जान पहचान हो गई थी I आधे घंटे के प्रातः भ्रमण में , सिंह साहब के पास बातों का विषय, ज़्यादातर सीज़र ही होता था I कभी कभी शर्मा जी को…
ContinueAdded by pratibha pande on June 3, 2016 at 12:30pm — 30 Comments
चलो तलाशें
तुम्हारे मेरे बीच की
गुम हो गई धूप
कितनी कुनमुनी खिली खिली
और बातून थी वो
बोलती रहती थी
या कहूँ कि बस
वो ही बोलती थी
किसी भी सूरज की
नहीं थी मोहताज़
पसरी पड़ी रहती थी
हमारे बीच वो डीठ
जिद्दी इतनी कि
हर जगह चलती थी साथ
कभी आँखों में चढ़कर
तो कभी गालों पर
बारिश कोहरे को चीर
चमकती थी बेख़ौफ़
सर्द ठण्ड में गर्म बिछौना
और गर्मी…
ContinueAdded by pratibha pande on May 23, 2016 at 7:30pm — 10 Comments
कितना अजीब खेल है
ये तंबोला
हाउस कटते हैं
तभी मिलती है जीत
आज के महानगरीय
सत्य जैसा
मजबूरी का मुखौटा पहने
यहाँ स्वार्थ चीखता है
दंभ के मंच से
जुड़ाव, रिश्ते कटते हैं
तंबोला की संख्या की तरह
और बनता है' हाउस '
कुछ की भावुक बेवकूफियाँ
काट नहीं पातीं सारे रिश्ते
वो हारे हुए कुंठित
इर्ष्या से देखते हैं
उन विजयी लोगों को
जो पूरा हाउस काट कर
जीत…
ContinueAdded by pratibha pande on April 5, 2016 at 10:00pm — No Comments
ठिठका तो था वो
एक पल को देहरी पर
और फिर निकल गया I
शायद सुन ली होंगी
घर के अन्दर से आती हुई आवाजें
मुट्ठी भींचे ,नारे लगाती,
भ्रामित भी था
कि बाहर से आ रही हैं
या घर के अन्दर से
कि बाहर की ऐसी ही आवाजों को
रोकने के लिये ही तो
ओढ़ी थी सफ़ेद मौत उसने
फिर ये घर के अन्दर से कैसे ?
समझ नहीं सका होगा कुछ
और फिर थक कर
निकल गया उस पार
हर भ्रम से दूर I…
ContinueAdded by pratibha pande on February 14, 2016 at 6:00pm — 5 Comments
उस गाँव के छोटे से स्टेशन में कोई गाड़ी नहीं रूकती थी , एक दो पैसेंजर गाड़ियों को छोड़कर I वो और जस्सी ,धड धड करके मुहँ चिढ़ाकर निकलती गाड़ियों को खुले मुहँ और फैली आँखों से देर तक देखते रहते थे I उन गाड़ियों के ठन्डे डब्बे जो कांच से एकदम बंद होते थे ,जस्सी को बहुत लुभाते थे I उन दोनों सात आठ साल के बच्चों की आँखों में एक ही सपना हुआ करता था कि ठंडे डब्बे वाली गाड़ी में बैठना है एक दिनI
स्टेशन की बैंच में बैठा वो इन्हीं पुरानी यादों में खोया था I आज स्टेशन का नज़ारा कुछ और…
ContinueAdded by pratibha pande on February 6, 2016 at 2:40pm — 21 Comments
मैं राजपथ हूँ
भारी बूटों की ठक ठक
बच्चों की टोली की लक दक
अपने सीने पर महसूसने को
हूँ फिर से आतुरI
सर्द सुबह को जब
जोश का सैलाब
उमड़ता है मेरे आस पास
सुर ताल में चलती टोलियाँ
रोंद्ती हैं मेरे सीने को
कितना आराम पाता हूँ
सच कहूं ,तभी आती है साँस में साँस
इतराता हूँ अपने आप पर I
पर आज कुछ डरा हुआ हूँ
भविष्य को लेकर चिंतित भी
शायद बूढा हो रहा हूँ…
ContinueAdded by pratibha pande on January 25, 2016 at 4:52pm — 8 Comments
पूरी रफ़्तार से गाड़ी चला रहा था वो ,फिर भी काइनेटिक में सवार पिज़्ज़ा वाले लड़के से आगे नहीं निकल पा रहा था Iपिज़्ज़ा वाला पीछे मुड़ मुड़ कर उसे देखता हुआ हंस रहा था Iतभी उसने देखा कि पिज़्ज़ा वाले के पीछे निशा भी बैठी है I" रुक जा , आज मै तुझसे पहले टाइम पर पहुँच जाऊँगा, और निशा तुम कहाँ जा रही हो ?सुनो तो ,निशा ..निशा " वो जोर से चीखा I
"क्या चिल्ला रहे हो नींद में अरुण ?"पत्नी निशा उसे झंकझोर रही थी Iपसीने से लथ पथ वो उठ बैठा I
"निशा " पत्नी का हाथ पकड़ लिया उसनेI "सॉरी ,कल रात भी…
ContinueAdded by pratibha pande on January 4, 2016 at 4:00pm — 10 Comments
दूर क्षितिज में देखा तारा ,सबका मन हर्षाया
पाप बंध से हमें छुड़ाने,मरियम सुत था आया
दया प्रेम भाईचारे का ,था सन्देश सुनाता
दीन दुखी की सेवा से ही ,जुड़े प्रभु से नाता
आडम्बर में लिप्त जनों को .उसका सत्य न भाया
पाप बंध से हमें छुड़ाने ,मरियम सुत था आया
मानवता के हत्यारे तो ,हर युग में हैं आते
इनका कोई धर्म न होता ,पर दुःख में सुख पाते
उन लोगों ने फिर ईसा को ,था सलीब चढ़वाया
पाप बंध से हमें छुड़ाने ,मरियम…
ContinueAdded by pratibha pande on December 21, 2015 at 10:00am — 9 Comments
" नानी ,आप दोनों की शादी को पचास साल के ऊपर हो गए i वाऊ "I
"और फिर भी हम दोनों खुश दिख रहे हैं ,ये ही पूछना चाह रही हो ना ?"नाना जी पीछे खड़े मुस्करा रहे थे I
"तब ऑप्शंस कम थे न बेटा , मोबाइल इन्टरनेट कुछ भी नहीं था ,जो माँ बाप ने ढूँढ दिया बस उसी को झेल रहे हैं I"नानी की आँखों में शैतानी थीI
"ऑप्शंस होते तो मैडम इतनी अच्छी खिचड़ी खिलाने वाला मिलता तुम्हे "? नानी के हाथ में गरम खिचड़ी की प्लेट थमाते नाना पास आके बैठ गएI
छःमहीने पहले जब से इस शहर में नौकरी लगी है…
ContinueAdded by pratibha pande on December 15, 2015 at 11:00pm — No Comments
तीन दिन के नागे के बाद वो आज आई थी Iमन में आया खींच के डांट लगाऊं पर साथ में चार साल के मुन्नू को देख चुप रह गई I
"बड़ी नई साड़ी पहन कर आई है आज तो ,और ये मुन्नू ने भी नए कपड़े पहन रखे हैं "?
"मैडम जी वो दो दिन मंदिर में रत जगा था ना "I
"पहले ये परांठा सब्जी खिला दे मुन्नू को फिर काम करना "I
"ये नहीं खायेगा मैडम जी ,सुबह से ही प्रसाद मिठाई फल खूब खा रहा है "मुन्नू ने भी आँखों से नानी की बात का अनुमोदन कर दिया I
"कहाँ से आ गया इतना प्रसाद ?"
"वो…
ContinueAdded by pratibha pande on December 2, 2015 at 8:00pm — 11 Comments
मेरी बेटी ने गमले में
लॉलिपॉप बो दिया हैI
खुद को पूरा भिगो कर
पानी भी देती है
मिठास की लहलहाती फसल का
इंतज़ार कर रही है I
पगली ने उस दिन
कागज़ का तिरंगा भी बो दिया था
कि ढेर सारे तिरंगे
ढेर सारा देश प्रेम उगेगा I
बच्चों की बातें हैं
ऐसी ही बेतुकी ,नासमझ I
हम तो बड़े हैं ,समझदार हैं
हम थोड़ी करते हैं विश्वास
इन बातों पर ,हैं ना ?
मौलिक व् अप्रकाशित
Added by pratibha pande on November 19, 2015 at 5:30pm — 8 Comments
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