For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

फ़ास्ट फॉरवर्ड [लघु कथा ]

"यहाँ आम ,यहाँ अमरुद और वहां पर पपाया के पेड़ लगायेंगे ,ठीक मम्मा ? पेड़ लगाने के लिए उसके दस साल के बेटे का उत्साह फूटा पड़ रहा था I

एक महीने पहले ही वो लोग अपने इस नए बने घर में आये थे Iबगीचे वाले घर का उसका बचपन का सपना अब आकार  ले रहा थाI क्यारियाँ तैयार थीं ,बस पौधे  रोपने थे I

"मम्मा ,अपना बगीचा भी बुआ दादी के बगीचे जैसा बन जायेगा ना एक दिन ?खूब सारे बड़े बड़े पेड़ और ...."I

बेटे की चेहरे की चमक ने एकदम उसके दिमाग का फ़ास्ट फॉरवर्ड का बटन दबा दिया ...Iबेटा बहु  ,पोते पोती पेड़ों की छाया में हँसते खेलते ...बीस साल बाद का नज़ारा .देख लिया उसने एक पल में ..I

"लो ,बुआ का फोन "पति पीछे  खड़े थे I

" बुआ हम अभी पौधे ही रोपने जा रहे थे ,और आपको याद भी कर रहे थे "उमंग में बही जा रही थी वो I

"बेटा, मै मुंबई जा रही हूँ बंटी के साथ Iयहाँ का मकान बेच दिया है ,कई महीनों से बंटी पीछे पड़ा था ...Iमुंबई में इसे फ्लैट लेना है ...हाँ बेटा सुन .नीम का पेड़ ज़रूर लगाना ...I

बुआ की आवाज़ का गीला पन उसने फोन में भी महसूस कर लिया I

"मम्मा ,चलो ना ..कब लगायेंगे पेड़  ?" बेटा हाथ खींच रहा था I

अचानक दिमाग का फ़ास्ट फॉरवर्ड बटन फिर से दबने को तत्पर हो गया ,पर अब की बार  ....जोर से झटक दिया उसने सर को ..I नहीं ..नहीं सोचना है कुछ भी ...I

"चल बेटा  ,लगाते हैं पेड़ "I

मौलिक व् अप्रकाशित 

Views: 773

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 29, 2015 at 10:38am

"बेटे की चेहरे की चमक ने एकदम उसके दिमाग का फ़ास्ट फॉरवर्ड का बटन दबा दिया ...Iबेटा बहु  ,पोते पोती पेड़ों की छाया में हँसते खेलते ...बीस साल बाद का नज़ारा .देख लिया उसने एक पल में " लघु कथा  की  जान  है  ये बेहतरीन पंक्तिया | हार्दिक बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 27, 2015 at 11:25am

जिस घर को कितनी मेहनत और लगन से सँवारते हैं भावनात्मक रूप से जुड़ जाते हैं वाही जब छोड़ना पड़ता है तो दिल रो उठता है हम तो सरकारी आवास को ही बदलते दुखी होते हैं फिर उनकी सोचो जो बरसों से अपने घर  में रहते हैं वो अचानक छोड़ना पड़े तो कितना दुःख होता होगा |बहुत अच्छी लघु कथा  लिखी है भैया मिथिलेश जी की सलाह स्वागत योग्य है |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 27, 2015 at 10:05am

आदरणीया प्रतिभा जी , अच्छी लगी आपकी लघुकथा । आपको हार्दिक बधाई ।

Comment by Archana Tripathi on August 25, 2015 at 11:38pm
बहुत ही बेहतरीन कथा हैं यह प्रतिभा पाण्डेय जी,जिस मकान को हम घर बनाते हैं उसी के उजड़ने कल्पना हमे अंदर तक हिला देती हैं इसी बात को दर्शाती हैं ।हार्दिक बधाई
Comment by Archana Tripathi on August 25, 2015 at 11:38pm
बहुत ही बेहतरीन कथा हैं यह प्रतिभा पाण्डेय जी,जिस मकान को हम घर बनाते हैं उसी के उजड़ने कल्पना हमे अंदर तक हिला देती हैं इसी बात को दर्शाती हैं ।हार्दिक बधाई
Comment by pratibha pande on August 25, 2015 at 3:25pm

आदरणीय मिथिलेश जी ,आपके मार्ग दर्शन  अनुसार सुधार  कर लिया है ,भविष्य में भी इसका ध्यान रखूंगी . मार्ग दर्शन और सराहना के लिए आपकी ह्रदय से आभारी हूँ  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 25, 2015 at 11:38am

आदरणीया प्रतिभा जी, एक बेहतरीन कथानक के ताने बाने में बुनी हुई  शानदार लघुकथा हुई है. लघुकथा का सकारात्मक अंत इसे मेरे लिए विशिष्ट बनाता है. इस शानदार प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई. आपकी रचनाओं का कायल रहा हूँ इसलिए रचना के प्रस्तुतीकरण विषयक निवेदन है कि वर्तनी, कॉमा आदि की छोटी छोटी त्रुटियाँ रचना के प्रभाव को कम करती है. इसलिए इन त्रुटियों को सुधारने के बाद ही रचना पोस्ट हो तो प्रस्तुति का प्रभाव दुगुना हो जाता है. मुझे जहाँ वर्तनी, कॉमा या विराम चिन्ह बाबत त्रुटी लगी उसे सुधारने का प्रयास किया है. आप एक बार अवश्य देख लीजियेगा. 

-------------------

"यहाँ आम ,यहाँ अमरुद और वहां पर पपाया के पेड़ लगायेंगे ,ठीक मम्मा?"  पेड़ लगाने के लिए उसके दस साल के बेटे का उत्साह फूटा पड़ रहा था I एक महीने पहले ही वो लोग अपने इस नए बने घर में आये थे I बगीचे वाले घर का उसका बचपन का सपना अब आकार  ले रहा था I क्यारियाँ भी तैयार थीं, बस पौधे  रोपने थे I

"मम्मा, अपना बगीचा भी बुआ दादी के बगीचे जैसा बन जायेगा ना एक दिन ? खूब सारे बड़े बड़े पेड़ और ...."  बेटे की चेहरे की चमक ने एकदम उसके दिमाग का फ़ास्ट फॉरवर्ड का बटन दबा दिया ...बेटा-बहू, पोते-पोती पेड़ों की छाया में हँसते-खेलते ...बीस साल बाद का नज़ारा, देख लिया उसने एक पल में ..I

"लो, बुआ का फोन "पति पीछे  खड़े थे I

" बुआ हम अभी पौधे ही रोपने जा रहे थे और आपको याद भी कर रहे थे I " उमंग में बही जा रही थी वो I 

"बेटा, मै मुंबई जा रही हूँ बंटी के साथ I यहाँ का मकान बेच दिया है I कई महीनों से बंटी पीछे पड़ा था ...मुंबई में इसे फ्लैट लेना है ...हाँ बेटा सुन, नीम का पेड़ ज़रूर लगाना ..I" बुआ की आवाज़ का गीलापन उसने फोन पर भी महसूस कर लिया I

"मम्मा, चलो ना ..कब लगायेंगे पेड़  ?" बेटा हाथ खींच रहा था I

अचानक दिमाग का फ़ास्ट फॉरवर्ड बटन फिर से दबने को तत्पर हो गया, लेकिन अब की बार  नहीं....जोर से झटक दिया उसने सिर को I

"चल बेटा, लगाते हैं पेड़ I "

Comment by pratibha pande on August 25, 2015 at 10:50am

कथा का मर्म समझने और सकारात्मक अंत का अनुमोदन करने के लिए आपका आभार आ० कांता जी

Comment by pratibha pande on August 25, 2015 at 10:47am

आपकी तरह पहले मैंने भी इसको वहीँ समाप्त करने का विचार किया था ,पर बाद में एक सकारात्मक अंत का विचार   आया, सार्थक टिपण्णी के लिए आपका आभार आ० डॉ गोपाल नारायण जी  

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 25, 2015 at 10:23am

कथा मूल रूप में वहीं समाप्त होते है जब बुआ फोन पर घर बेचने की सूचना देती हैं  शिल्प की कसावट इसे और बेहतर बना सकती थी . कथानक अच्छा लिया गया है .

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी "
15 hours ago
नाथ सोनांचली commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post नूतन वर्ष
"आद0 सुरेश कल्याण जी सादर अभिवादन। बढ़िया भावभियक्ति हुई है। वाकई में समय बदल रहा है, लेकिन बदलना तो…"
21 hours ago
नाथ सोनांचली commented on आशीष यादव's blog post जाने तुमको क्या क्या कहता
"आद0 आशीष यादव जी सादर अभिवादन। बढ़िया श्रृंगार की रचना हुई है"
21 hours ago
नाथ सोनांचली commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post मकर संक्रांति
"बढ़िया है"
21 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

मकर संक्रांति

मकर संक्रांति -----------------प्रकृति में परिवर्तन की शुरुआतसूरज का दक्षिण से उत्तरायण गमनहोता…See More
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

नए साल में - गजल -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

पूछ सुख का पता फिर नए साल में एक निर्धन  चला  फिर नए साल में।१। * फिर वही रोग  संकट  वही दुश्मनी…See More
23 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post नूतन वर्ष
"बहुत बहुत आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170
"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। दोहों पर मनोहारी प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170
"सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170
"सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी , सहमत - मौन मधुर झंकार  "
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170
"इस प्रस्तुति पर  हार्दिक बधाई, आदरणीय सुशील  भाईजी|"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service