चढ़ावा - लघुकथा
''दादू .... !''
''हूँ .... !''
''हम मंदिर में पैसे क्यों चढ़ाते हैं … ?''
''बेटे , हर आदमी को अपनी नेक कमाई से कुछ न कुछ अपनी श्रद्धानुसार प्रभु के चरणों में अर्पण करना चाहिए। ''
''लेकिन दादू , आप तो कहते हैं कि हमारे पास जो भी है तो प्रभु का दिया है … . । ''
''हाँ तो … । ''
''तो जब सब कुछ प्रभु ही देते हैं तो हम फिर उन्हें पैसे क्यों चढ़ाते हैं ?''
दादू निरुत्तर हो पोते का मुख देखने लगे।
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
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