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लात का असर / लघुकथा / कान्ता राॅय

आज सूरज बहुत ही खुश था । उसका घमंडी पडोसी उसके पास इतने सालों में पहली बार मदद माँगने जो आ रहा था ।

पडोसी और उसकी बीवी ने  पिछले पंद्रह साल से सूरज का जीना हराम कर रखा था । जबसे वह अपनी नवविवाहित पत्नी को लेकर आया तभी से इन दोनों ने उसको बहला फुसला कर अपने ही रंग में रंग लिया था ।

सालों के खुन्नस निकालने का सुअवसर आज आन पडा़ था ।

हुआ युँ की जाने कैसे पडोसी को पिछले कई दिनों से कमर में दर्द बैठा हुआ है ।

सब डाॅ0 से थक गये तो किसी नें कहा की जो उल्टा पैदा हुआ होगा उसकी लात खाने से ये कमर का दर्द बिलकुल ठीक हो जायेगा ,और सौभाग्य से सूरज उल्टा ही पैदा हुआ था ।

पत्नी का विशेष आग्रह कि उनको सूरज लात मारे और दिखावे के लिए अनमने मन से वो मान गया ।

आज सूरज ठान कर ही बैठा था कि उनकी कमर ठीक हो ना हो लेकिन उसके लात का असर ठीक ही पडना  चाहिए पडोसी  पर ।


कान्ता राॅय
भोपाल
मौलिक और अप्रकाशित

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Comment by kanta roy on August 5, 2015 at 11:21pm
कथा पसंदगी के लिए आभार दिल से आपको आदरणीय हर्ष महाजन जी ।
Comment by kanta roy on August 5, 2015 at 11:19pm
प्रोत्साहन के लिए दिल से आभार आपको आदरणीय तेज वीर सिंह जी ।
Comment by kanta roy on August 5, 2015 at 11:19pm
बदले की भावना इंसान में सबसे बडी गलत प्रवृत्ति है । इसके वश में होकर सही गलत का निर्णय खो बैठता है । कथा पर उपस्थिति के लिए तहे दिल से शुक्रगुजार हूँ आदरणीय डाॅ. गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी ।
Comment by kanta roy on August 5, 2015 at 11:14pm
बिलकुल सही कहा है आपने आदरणीया राजेश कुमारी जी , खुन्नस निकालने वालों को तो कोई बहाना चाहिए । कथा पसंद करने के लिए तहे दिल से आभार आपको ।
Comment by kanta roy on August 5, 2015 at 11:12pm
आपको कथा अच्छी लगी ये मेरे लिए प्रोत्साहन भरी टिप्पणी है आपकी आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी । आभार
Comment by kanta roy on August 5, 2015 at 11:11pm
कथा पसंदगी के लिए तहे दिल से आभार आपको आदरणीय डा. आशुतोष मिश्रा जी ।
Comment by Harash Mahajan on August 4, 2015 at 10:32am

आदरणीय kanta roy जी एक सुंदर और भावपूर्ण लघुकथा के लिए बधाई सवीकार करें | दिली दाद !! साभार !!

Comment by TEJ VEER SINGH on August 4, 2015 at 10:29am

आदरणीय कांता जी, बहुत शानदार लघुकथा!हार्दिक बधाई!आपने बेहद रोचक विषय चुना!आजकल भी लोग टोने टोटके में विश्वास रखते हैं!पुनः बधाई!

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 4, 2015 at 9:59am

बदले की विकत भावना . यह भी सोच का एक स्तर  है 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 3, 2015 at 9:06pm

खुन्नस निकालने वालो को बस मौका चाहिए ...लघु कथा पढ़कर बरबस ही मुस्कान आ गई ..बहुत बहुत बधाई आ० कांता रॉय जी 

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